सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/९८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

यह किशोर नवचन्द्रकैतु ललिताहु किशोरी । तन्मय लखत परस्पर इकटक अद्भुत जोरी ॥ लखे नवल यह "प्रेमराज्य ।" अति है आनन्दित । चमकि उठ्यो नव चार-चन्द्र तारागन वन्दित ।।