पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/११४

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+ पीछे खड़ी हो गई। यमुना एक वार सहम उठी। फिर उसने देखा उस स्त्री न हाथ का लोटा उठाया और उसका तरल पदाथ विजय के मिर पर उडल दिया। विजय व उप्ण मस्तर का कुछ शीतनता भली नगा । घूमकर दवा नो घटी खिलखिलाकर हम रही थी। वह आज इन्द्रिय जगत् क वैद्य त् प्रवाह म चकार खान नगा । चारा आर विद्य न कण चकमने दौडत थे । युवर विजय पन म न रह मका उमन घटी का हाय परडार पूछा-गजबान तुम रग उरेकर उमकी शीतनता द मक्ती हो कि उम रग की मी ज्वाला-लाल ज्याला आह जनन हो रही है घटी ! आम-मयम भ्रम है । वालो मैं भरे पाम दाम न था-ग फीका होगा विजय वावू | हाड माम के वास्तविक जीवन का सय यौवन आन पर उसका आना न जानवर बुनान को धन रहती है। जा चल जाने पर अनुभूत हाता है वह यौवन धीवर क लहगेल जाल म पसे हुए स्निग्ध मत्स्य सा तडफडान वाला योवन जामन म दवा हुआ पचवर्षोय चपन तुरग क ममान पृथ्वी सो कुरेदने वाला त्वरापूण यौवन अधिक न सम्हल सका विजय ने घटी को अपनी मामल भुजामा म तपेट लिया और एक दृढ तथा दीघ चुम्बन म रग का प्रतिवाद क्यिा । यह मजीव और उष्ण आलिंगन विजय वे युवाजावन का प्रथम उपहार था---चरम लाभ था । कगार को जैम निधि मिनी हो । यमुना और न दख मकी उसने खिडकी बद कर दी। उम शब्द न दोना वो अलग कर दिया । उमी समय इक्का के रुकना शब्द बाहर हुआ । यमुना नीच उतर आई किवाड खोलने । किश री भीतर आई। ___ अब घटी और विजय पाम पास बैठ गय थे। किशोरी ने पूछा--विजय कहाँ है ? यमुना कुछ न वोती। डाटकर किशारी ने कहा--बोलती क्यो नही यमुना? यमुना न कुछ न कहकर खिडकी खोत दी। किगोरी न दखा--निखरी चाँदनी म एक स्त्री और पुरुप कदम्ब के नीचे बैठे हैं । वह गरम हा उठी । उमन वही में पारा-घटी। ____ घटी भीतर आई । विजय का साहस न हुआ वह वही बठा रहा । किशारी ने पूछा-घटी क्या तुम इननी निलज्ज हो। म क्या जान कि लज्जा किन कहते है । व्रज म तो सभी होनी म रग डानती है मैं भी रग डानने आई । विजय वाटू को रग म चोट तो न नी होगी किशोरी ८४ प्रसाद वाडमय