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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/१२०

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चित्र को लतिका के हाथ से लेकर दखना आरम्भ किया था कि वाथम ने एक लम्प लाकर टेबुल पर रख दिया। वह ईसा को जननी मरियम का एक सुन्दर चित्र था । उस दखत ही जॉन की आखे भक्ति से पूर्ण हो गई । वह बडी प्रसन्नता स वोला-बाथम | तुम बडे भाग्यवान हो, इस चित्र को बेचना मत । ___ सरला न चाय लाकर टेवल पर रखखी, और वाथम कुछ बोलना ही चाहता था कि रमणी की कातर ध्वनि उन लागो का सुनाई पडी-'बचाओ । वचाओ।' बाथम न देखा-एक स्त्री दौडती-हॉफती हुई चली आ रही है, उसके पीछे दो मनुष्य भी । बाथम न उस स्त्री को दौडकर अपन पीछे कर लिया और चूंसा तानत हुए कडक्कर कहा-आग वढे, तो जान ले लूंगा। पीछा करने वालो न देखा, एक गोरा मुंह । व उल्टे पैर लौटकर भागे। सरला न तब तक उस भयभीत युवती का अपनी गोद में ले लिया था । युवती रो रही थी। सरला न पूछा-क्या हुआ है । घबराओ मत अब तुम्हारा कोई कुछ न कर सकगा । युवती न कहा- विजय बाबू को इन मवा न मारकर गिरा दिया है ।---वह फिर रोन लगी। जबकी लतिका न बाथम की ओर दखकर कहा- रामदास को बुलाआ, लालटेन लेकर देख कि वात क्या है। वाथम ने पुकारा-रामदास । वह भी इधर ही दौडा हुआ आ रहा था। लालटेन उसके हाथ में थी। वाथम उसक माय चला । बॅगले स निकलते ही वायी ओर एक मोड पडता था। वहाँ सडक की नाली तीन फुट गहरी है, उसी में एक युवक गिरा हुआ दिखाई पडा । वाथम न उतरकर दखा कि युवक आखे खोल रहा है । सिर में चोट आन से वह क्षण-भर के लिए मूच्छित हो गया था। विजय पूर्ण स्वस्थ युवक था। पीछे की आकस्मिक चोट न उसे विवश कर दिया, अन्यथा वह दो के लिए कम न था । बाथम के सहार वह उठकर खडा हुआ । अभी उस चक्कर आ रहा था, फिर भी उसन पूछा-घण्टी कहाँ है | --बाथम न कहा-भरे बंगले में है, घबरान की आवश्यकता नहीं । चलो। विजय धीरे-धीरे बंगले म आया और एक आरामकुर्सी पर बैठ गया। इतन में चर्च का घण्टा बजा । पादरी ने चलन की उत्सुकता प्रकट की। लतिका न कहा-पिता । बाथम प्रार्थना करन जायंगे, मुझे आज्ञा हो, तो इन विपन्न मनुष्यो को सहायता करूं, यह भी तो प्राथना से कम नही है। जान न कुछ न कहकर कुबडी उठाई, वाथम उसके साथ-साथ चला ! अब, ६० प्रसाद वाडमय