पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/१२१

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लतिका और सरला, विजय और घण्टी की सवा म लगी । सरला ने कहा-चाय ल आऊँ, उसे पीन स स्फूर्ति आ जायगी। विजय ने कहा- नहीं । धन्यवाद ! अब हम लाग चल जा सकत है । मेरी सम्मति है कि आज की रात आप लोग इसी बंगल पर वितावे सभव है कि व दुष्ट फिर कही घात में लग हो । लतिका ने कहा । सरला लतिका के इस प्रस्ताव स प्रसन्न होकर घण्टी स बाली-क्या बटी । तुम्हारी क्या सम्मति ह तुम लागा का घर यहा स क्तिनी दूर हे । –कहकर रामदास का कुछ सकत किया। ____ विजय न कहा-हम लाग परदशी है, यहा घर नहीं । अभी यहा आय एक सप्ताह स अधिक नहीं हुआ। जाज मैं इनक साय एव तांगे पर घूमन निकला। दा-तीन दिन स दो एक मुसलमान गुण्डे हम लागा को प्राय घूम-फिरकर दखत थे । मैन उस पर कुछ ध्यान नही दिया था । आज एक तांगवाला मेर कमरे के पास ताँगा रोककर बडी दर तक किसी से बाते करता रहा। मन दखा, तागा अच्छा है । पूछा-किराय पर चलोगे | उसन प्रसनता से स्वीकार कर लिया। सध्या हा चली थी। हम लोगो ने घूमन क विचार से चलना निश्चित किया और उस पर जा बैठे। इतन म रामदास चाय का सामान लकर आया। विजय न पीकर कृतज्ञता प्रकट करते हुए फिर कहना प्रारम्भ किया हम लोग बहुत दूर-दूर घूमकर इस चर्च के पास पहुच । इच्छा हुई कि घर नौट चल पर उस तांगेवाला न कहा-बावू साहब, यह चर्च अपन ढग का एक ही है, इस दख तो लीजिए । हम लाग कुतुहल स प्रेरित हाकर इस दखन क लिए चल । सहसा अंधेरी झाडी म स वे ही दोना गुण्डे निकल आय और एक ने पीछे स मेरे सिर पर डण्डा मारा । मैं आकस्मिक चोट स गिर पड़ा। इसक वाद मैं नही जानता कि क्या हुआ। फिर, जैसा यहाँ पहुँचा, वह सब ता आप लोग जानती है । घण्टी न कहा-~मै यह दखत ही भागी। -मुझस जैस किसी ने कहा कि, य सब मुझ तागे पर बिठाकर ले भागग । आप लोगा को कृपा स हम लोगा की रक्षा हो गई। सरला, घण्टी का हाथ परडकर भीतर ल गई। उस कपड़ा बदलन का दिया । दूसरी धोती पहनकर जब वह वाहर आई तव सरला न पूछा-घण्टी । य तुम्हार पति है ? कितन दिन बीते ब्याह हुए? ____घण्टी ने सिर नीचा कर लिया । सरला क मुहू का भाव क्षण-भर म परिवर्तित हो गया, पर वह आज क अतिथिया की अभ्ययना म कोई अन्तरनिही पड़न ककाल ६१