पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/१३७

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ख का अतान महानुभूति स लिपटा हुई कहानिया का मुनकर आज भी हम-तुम मू वहा दत है । क्या व प्रेम करक प्रम सिखनावर निमम स्वार्थ पर हृदया [ मानव प्रेम को विकसित करक ब्रज का छोडकर चल गय-चिरकाल के नए । बाल्यकाल को नीलाभूमि ब्रज का आज भी इसीलिए गौरव है। यह वही जह । वहा यमुना का किनारा है। ____कहत-कहत गास्वामी को साखा स अविरत अश्रुधारा बहन लगी। माता नीरा रहे थ। गास्वामी चुप होकर बैठ गये । श्राताना न इधर उधर हाना आरभ किया। गतदव आगम म ठहर हुए नागा क प्रब ध म ग गया परन्तु यमुना ?-~~-वह र एक मोनासरीवृष कनोच नुपचाप बैठी थी। वह सोचती थी -ऐस भगवान् भा वाल्यकान में अपनी माता से अना पर दिय गय थ | उसका हृदय व्याकुल हो उठा । वह विस्मृत हा गई कि उस शान्ति वो आवश्यकता है । डेढ प्तिाह व अपन हृदय क टुकडे लिए वह मचल उठी-वह जब कहाँ है ? क्या जीवित है ? उसका पालन कान करता हागा ? वह जियगा अवश्य एस बिना पत्न व वाला जीने है-इसका ता इतना वडा प्रमाण मिल गया है । हाँ और वह एक नर रत्न हागा महान होगा। क्षण भर म माता का हृदय मगल सामना स भर उठा । इस समय उसकी जाखा म औमू न थे । वह शान्त बैठा यो। चाँदनी निखर रही थी। मौलसिरो के पत्ता व अतरान स चन्द्रमा का आलोक उसक बदन पर पड़ रहा था। स्निग्ध मातृ भावना स उसका मन उल्लास स परिपूण था ! भगवान की कथा क छल स गोस्वामी न उसक मन क एक सरह एक असन्ताप का शान्त कर दिया था। मगनदव का आगन्तुका के लिए किसी वस्तु की आवश्यकता थी। गास्वामी जो न कहा-जाआ यमुना स कहा । -मगत यमुना का नाम सुनत ही एक बगर चौक उठा । कुतूहन हुआ फिर आवश्यकता स प्रेरित हाकर किसी जनात यमुना को खोजन के लिए आश्रम के विस्तृत प्रागण म घूमन तगा। मौलसिरी क वृक्ष व नीचे यमुना निश्चन बैठी थी। मगदव न दखा एवं स्त्री है यही यमुना हागी। समीप पहुँचकर देखा तो वही यमुना थी । पवित्र दव मन्दिर को दीपशिखा सो वह ज्यातिमयी मूर्ति थी । मगलदव न उस पुकारा-यमुना । वात्सल्य विभूति क काल्पनिक आनन्द म पूर्व उसक हृदय म मगल के शब्द न तीन घृणा का सचार कर दिया। वह विरक्त होकर अपरिचित-सी बोल उठीकौन है? ककाल १०७