________________
ककाल के अंत मे जोड दिया जाय तो वह ककाल के अलम मे संस्थित ही नही हो जायगा बल्कि मौजू भी होगा-जमुना के प्रसंग मे 'नये' को यह स्थिति और स्वयसेवको द्वारा उसका संस्कार गाला द्वारा अन्य प्रसग मे की गई इस टिप्पणो को महत्वपूर्ण और सार्थक भी बना देता है कि "पदमिनी के समान जल मरना स्त्रियां ही जानती हैं, और पुरुष केवल उसी जली हुई राख को उठा कर अनाउद्दीन के सदृश विखेर देना हो तो जानते हैं ?" (ककाल, पृ० १:६) मेरा उद्देश्य पद्मावत और ककाल की तुलना करना नहीं है बल्कि यह दिखाना है कि जयशंकर प्रसाद 'कला माध्यम' को कितना महत्त्व देते हैं और विषाद की जो हल्की छाया सभी उपन्यासो मे पडती है उसका कही न कही कोई कारण भी है। यह विषाद 'आधी' की कहानियो में बहुत अधिक है, जो एक प्रकार के वैराग्य को उत्पन्न करता है और मेरी राय मे यही 'वैराग्य' प्रसाद का अभिप्रेत है। 'तितली' मे विषाद की जो छाया है वह नियतिवाद को प्रतिष्ठित करती है । दोना उपन्यासो मे एक साम्य यह भी है कि दोनो ही ईश्वर मे विश्वास को प्रतिष्ठित करते हैं-'नीरा' कहानी में नीरा की तरह । यह प्रतिष्ठा विषाद की गहराई को कम नही करती है। ककाल और तितली को दुनिया काफी भिन्न है कथा समय अवश्य एक है । परतु दृष्टि मे उत्पन्न सशय और यथार्थता तितलो मे एक प्रकार का गाधीवादी हल प्रस्तुत करती हैं । यह गाधीवादी हल इरावती में नहीं है। 'इरावती' मे इतिहास आदर्श के रूप में नहीं है बल्कि वर्तमान के लिए स्पष्टत. माध्यम है। इसमे प्रसाद की दार्शनिक्ता और चिन्तनशीलता 'वर्तमान' को अहिंसा और हिंसा, कायरता और निर्भयता, दुख और आनन्द, हृदयहीनता और हार्दिकता के स्तरो के रूप मे प्रस्तुत करती है। स्पष्टतः प्रसाद जी इसमे गाधी जी के सिद्धातो से भिन्न सिद्धात प्रस्तुत करते हैं और देश मे होने वाले हिंसात्मक आन्दोलनो को नैतिक और सैद्धाविक समर्थन देते हैं, जब कि "तितली' मे लगभग सभी पात्र हृदय परिवर्तन के दौर से गुजरते हैं । तितली शैलाको 'प्रसन्नता से सब कुछ ग्रहण करने के अभ्यास को' बापू का उपदेश बताकर समझाती है। बापू का उल्लेख जयशकर प्रसाद के पूरे साहित्य मे केवल एक बार तितलो मे ही पाया जाता है। और यह पाया जाना इस अर्थ मे सार्थक भी है कि इसमे ग्राम सुधार, त्याग, सेवा, शिक्षा और मानव कल्याण एक आदर्श के रूप में किये गए हैं । बैंक, अस्पताल, चकबन्दी आदि आधुनिक सुधार समतावाद और स्वतन्त्रता के बीच के गाधीवादी रास्ते ही हैं। जिस आदर्शवाद को प्रसाद जी दुःखवाद का परिणाम मानते हैं वही तितली मे वाटसन और रामनाथ नन्दरानी जैसे मानव चरित्रो मे अभिव्यक्त होता है । तितली का परिणाम कमाल १८:प्रसाद वाइ,मय