पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/१५०

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थीचन्द्र ने कहा-नहा तुम्ह अपन गल म उजल म पहिल हा पहुँचना चाहिए । म तुम्ह बहुत मुरक्षित रखना चाहता है। चन्दा न इठनात दुए कहा-मुय इस बगल ना रनावट रहुन मुन्दर लगती है इसकी ऊंची कुरसी और चारा आर बना हुमा उपवन बहुत ही गडावना श्रीचन्द्र ने कहा-चन्दा तुमपा भूल न जाना चाहिए कि ममार म पाए म उतना इर नहीं जितना जनरव म । इमलिए तुम नला मै हा तुम्हार वगल पर जाकर चाय पिऊँगा । अब इस बगल म मुझ प्रेम नहा रहा क्यानि सा दूमर 7 हाथ म जाना निश्चित है। चन्दा एव वार धूमार बडो हा गई। उसन पहा-एमा कदापि नहा हागा। अभी मर पास एक लाख रुपया है । म म मद पर तुम्हारी सब मपत्ति उपन यहां रख नगी । बाला पिर तो तुमा तिमी दमर की बात न मननी होगी? फिर हसत हए उसने कहा--जार मरा तगाता ता इस जम मटन का नही । श्राचद्र की धडान बढ़ गई। उसन पडा प्रसन्नता स चन्ना क कई चुम्बन निय और कहा--मरा सम्पत्ति हा नहीं मुय मा व धन रख ला प्यागे चन्दा । पर अपनी बदनामी बचाआ । नानी भी हम नागा का रहस्य न जान ता अच्छा षयाकि हम लोग वाह जैस भा हा पर सन्तान ता हम नागा वी वुराइयों स अनभिज्ञ रह । अन्यथा उनक मन म बुराइया व प्रति जवलना की धारणा बन जाती है। आर व उन अपराधा को फिर अपराध नही समझत जिह व जानत है कि हमार बडे लागा न भी किया है। नाती क जगन का ता अव ममय हा रहा ह । जच्छा वहा राय पाजएगा और सब प्रबध भी आज हा ठीक हो जायगा । गाडी प्रस्तुत थी चदा जाकर बैठ गई। नीचन्द्र ने एक दीघ नि स्वास लकर अपन हृदय का सब तरह क बोझा से हरका किया। १२० प्रसाद वाडमय