पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/१५८

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नहीं-नही, यह ठीक है-तारा हो है ? मैं इसे क्तिती वार काशी म किशोरी के यहाँ देखा है और मैं कह सकता है कि यह उसकी दासी यमुना है, तुम्हारी तारा कदापि नही । परन्तु आप उसको कैसे पहचानते । तारा मरे घर उत्पन्न हुई, पली और बढी । कभी उसका और आपका सामना तो हुआ नही, आपकी आज्ञा भी ऐसी ही थी । ग्रहण म वह भूलकर लखनऊ गई। वहाँ का एक स्वयसेवक उसे हरद्वार ले जा रहा था, मुझस राह म भेट हुई, मैं रेल में उतर पडा । मै उसे न पहचानूंगा। __ तो तुम्हारा कहना ठीक हो सकता है। --कहकर निरजन न मिर नीचा कर लिया। मैने इसका स्वर, मुख अवयव पहचान लिया, यह रामा की कन्या है | - भण्डारी ने भारी स्वर स कहा। निरजन चुप था । वह विचार में पड़ गया। थोड़ी देर मे बडबडाते हुए उसने सिर उठाया --दोनो का बचाना होगा दोना ही हे भगवान् ? इतने में गोस्वामी कृष्णशरण का शब्द उम सुनाई पडा--आप लोग चाहे जो समझे, पर मैं इस पर विश्वास नही कर सकता कि यमुना हत्या कर सकती है । वह ससार म सताई हुई एक पवित्र आत्मा है वह निर्दोष है । आप लाग दखेंगे कि उमे फासी न होगी। आवेश से निरजन उसके पास जाकर बोला-मै उसकी पैरवी का सब व्यय दूंगा। यह लीजिए एक हजार के नोट हे घटन पर और भी दूगा । अच्छे-अच्छे वकाल कर लिय जायें। उपस्थित लोगा न एक अपरिचित की इस उदारता पर धन्यवाद दिया। गास्वामी कृष्णाशरण हंस पड़ । उन्होने कहा---मगलदेव को बुलाना होगा वही सब प्रबन्ध करगा। निरजन उसी आश्रम का अतिथि हा गया और उसी जगह रहने लगा। गोस्वामी कृष्णशरण का उसके हृदय पर प्रभाव पड़ा । नित्य सत्सग होने लगा, प्रतिदिन एक-दूसरे के अधिकाधिक समीप होने लग । मौलसिरा के नाच शिलाखण्ड पर गोस्वामी कृष्णशरण और देवनिरजन बैठे हुए वात कर रह थे । निरजन न कहा महात्मन् । आज मैं तृप्त हुआ, मेरी जिज्ञासा ने अपना अनन्य आथय खोज लिया। श्रीकृष्ण : इस कल्याण-मार्ग पर मरा पूर्ण विश्वास हुआ। १३० प्रसाद वाङ्मय