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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/१७१

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से हिन्दी पढी । क्या कहूं, वे दिन वडे चैन के थे। पर आपदाएँ भी पीछा कर रही थी। __एक दिन मिरजा जमाल अपनी छावनी से दूर ताम्बूल-वीथी में बैठे हुए। बैसाख के पहल के कुछ-कुछ गरम पवन से सुख का अनुभव कर रहे थे । ढालुवे टोले पर पान की खेती, उन पर सुढार छाजन, देहात के निर्जन वातावरण को मचित्र बना रही थी । उसी से सटा हुआ, कमलो में भरा एक छोटा-सा ताल था, जिसम स भीनी-भीनी मुगन्ध उठकर मस्तक को शीतल कर देती । करनाद करते हुए कभी-कभी पुरइना से उड जाने पर ही जलपक्षी अपने अस्तित्व का परिचय द दत । मोमदव न जलपान की मामग्री सामने रख कर पूछा --क्या आज यही दिन बीतेगा? हाँ, देखो ये लोग कितन मुखी है सोमदव । इन दहाती गृहस्थो म भी कितनी आशा है, क्तिना विश्वास है । अपन परिश्रम म इन्हे कितनी तृप्ति ह । यहाँ छावनी है अपना जागीर म सरकार ? रोब से रहना चाहिए। दूसरे स्थान पर चाहे जैस रहिए। मोमदेव ने कहा। मोमदेव सहबर, सेवक और उनकी मभा का पण्डित भी था । वह मुहलगा भी था कभी-कभी उनसे उलझ भी जाता परन्तु वह हृदय स उनका भक्त था। उनके लिए प्राण द सकता था। चुप रहो मामदेव ? यहाँ मुझे, हृदय की खोई हुई शान्ति का पता चल रहा है । तुमने दखा होगा, पिताजी कितने यल से सचय कर यह सम्पत्ति छाड गये है । मुझे उम धन स प्रम करने की शिक्षा वे उच्चकोटि की दार्शनिक शिक्षा की तरह गम्भीरता स आजीवन देत रह । आज उसको परीक्षा हो रही है । मैं पूछता हूँ कि हृदय म जितनी मधुरिमा है कोमलता है, वह सब क्या कवल एक तरुणी मुन्दरता की उपासना की मामग्री है ? इसका और वाई उपयाग नही ? हंसने कजा उपकरण है, वे किसी झलमले अचल म हा अपना मुंह छिपाए किसी आशीवाद की आशा में पड़े रहते है ? ससार में स्त्रियो का क्या इतना व्यापक अधिकार है? ___सामदव ने कहा-आपक पास इतनी सम्पत्ति है कि अभाव को शका व्यर्थ है । जा चाहिए काजिए । वर्तमान जगत् का शासक प्रत्येक प्रश्नो का समाधान करने वाला विद्वान् धन तो आपका चिर सहचर और विश्वस्त है ही ? चिन्ता क्या? मिरजा जमाल न जलपान करत हुए प्रसग बदल दिया। कहा-आज तुम्हारे बादाम की बरफी में कुछ कडव बादाम थे। ककाल १४३