पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/१७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

सुन्दरी । उठा ल मरे सामन स पिंजरा, नही ता तेरी भी खापडी फूटेगी और यह तो टूटेगा ही! सुन्दरी ने वेढव रग देखा, वह पिंजरा लेकर चली । मन म साचती जाती थी -आज यह क्या 1 मन-बहलाव न होकर यह काण्ड कैसा । शवनम तिरस्कार न सह सकी, वह मर्माहत होकर श्वेत प्रस्तर के स्तम्भ से टिककर सिसकन लगी। मिरजा ने अपन मन को धिक्कारा । रान वाला मलका न उसे अकारण अकरुण हृदय को द्रवित कर दिया। उन्हान मलका का मनाने की चेष्टा की, पर मानिनी का दुलार हिचकियां लन लगा। कामल उपचारा न मलका को जब बहुत समय बीतन पर स्वस्थ किया, तब आसू के सूख पद-चिह्न पर हंसी की दौड धीमी थी, वात बदलन के लिए मिरजा न कहामलका, आज अपना सितार सुनाओ, दख अब तुम पैसा वजाती हा ? नही, तुम हंसी कराग और मैं फिर दुखी हाऊँगी। तो मैं समझ गया, जैस तुम्हारा बुलबुल एक ही आलाप जानता है-वैस ही तुम अभी तक वही भैरवी की एक तान जानती होगी कहते हुए मिरजा वाहर चल गये । सामन सोमदव मिला, मिरजा न कहा, सामदेव । कगाल धन का आदर करना नही जानते । ठीक है श्रीमान्, धनी भी ता सब का आदर करना नहीं जानते, क्याकि सवक आदरा क प्रकार भिन हैं । जो मुख-सम्मान आपन शवनम का द रक्खा है, वही यदि किसी कुलवधू को मिनता । वह वश्या ता नहीं है । फिर भी सामदव, सव वश्याया का दखा---उनम कितना के मुख सरल है, उनकी भाली भाली बाँखे रा-राकर कहती है, मुझ पीट-पीटकर चञ्चलता सिखाई गई है। मेरा विश्वास है कि उन्ह अवसर दिया जाय तो वे कितनी हा कुलवधुओ स किसा यात म कम न हाती । मरा एसा अनुभव नही, परीक्षा करक दखिय । अच्छा तो तुमको पुरोहितो करनी होगी। निकाह कराआग न ? अपनी कमर टटोलिये, मैं प्रस्तुत हूँ। -कहकर सोमदेव न हंस दिया । मिरजा मलका क प्रकोष्ठ की आर चल । सब आभूषण और मूल्यवान वस्तु सामन एकत्र कर मलका बैठा है । रहमत ने सहसा आकर देखा, उसकी आँखें चमक उठी। उसन कहा-बटो यह सब क्या? इन्ह सहज दना होगा । 471121 मार 4348 फकाल . १४६