पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/१७८

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किसे ? क्या मैं इन्हे घर ले जाऊँ ? नही, जिसका है उसे। पागल तो नही हो गई है-मिला हुआ भी कोई या ही लौटा दता है। चुप रहो वावा । उसी समय मिरजा ने भीतर आकर यह देखा। उसकी समझ में कुछ न आया । उत्तेजित हाकर उन्हान कहा-रहमत । क्या यह सब घर वाध ल जान का ढग था । रहमत आख नीची किय चला गया, पर मलका शवतन लाल हो गई। मिरजा ने सम्हलकर उसस पूछा-यह सब क्या है मलका । तेजस्विता स शबनम न कहा-यह सब मरी वस्तुएँ है, मैन रूप बच कर पायी है, क्या इन्हे घर न भेजूं । चोट खाकर मिरजा ने कहा-अब तुम्हारा दूसरा घर कौन है, शबनम । मैं तुमस निकाह करूंगा। _____ओह । तुम अपनी मूल्यवान वस्तुओ के साथ मुझे भी सन्दूक म बन्द किया चाहत हो । तुम अपनी सम्पत्ति सहेज लो, मै अपने का सहजकर देखू । मिरजा मर्माहत होकर चले गय । सादी धोती पहन सारगी उठाकर हाथ में देत हुए, रहमत से शवनम न कहा-चलो बाबा । कहाँ बेटी । अब तो मुझस यह न हा सकेगा और तुमन भी कुछ न सीखा --क्या करोगी मलका ? नही बाबा | शबनम कहो । चला, जो सीखा है वह गाना तो मुझे भूलगा नही, और भी सिखा देना । अब यहाँ एक पल नही ठहर सक्ती । बुड्ढे ने दीर्घ नि श्वास लेकर सारगी उठायी, वह आग आग चला। उपवन म आकर शवनम रुक गई। मधुमास था, चाँदनी रात थी। वह निर्जनता सौरभ-व्याप्त हो रही थी। शवनम न दखा, ऋतुरानी शिरिस क फला की कोमल तूलिका से विराट् शून्य में अलक्ष्य चित्र बना रही थी। वह खडी न रह सकी, जैसे किसी धक्क से खिडकी क बाहर हो गई। इस घटना का वारह बरस बीत गय थ, रहमत अपना कच्ची दालान म बैठा हुआ हुक्का पी रहा था। उसन अपन इकट्ठे किये हुए रुपया स और भी बीस बीघा खेत ले लिया था। गॉव म अब वह एक अच्छा किसान था। मेरा १५० प्रसाद वाङ्मय