सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/१८१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

ता हम ना का भी तैयार रहना चाहिए ? - कहार मिरजा ने अपनी गिरोही उठा लो। रहमत न पहा-आप भी फिममा वान म आत हैं, जाइए आराम कीजिए। सब लाग उस समय ता हंमत हुए उठ पर अपनी पाठरा म आन समय सम हाथ-पैर वापस लद हुए थे। म भा माँ | साथ काठरा म जाकर सा रहा। रात का जचाना कोलाहल मुनरूर मरी ऑप घुल गइ। मैं पहल सपना ममशार फिर ऑय बन्द गरने लगी, पर झुठलान म कठार नापत्ति कही सूठी हा सरती है । सचमुच डावा पडा था, गाव सब नाग भप स अपन-अपन घरा म घुस थे। मरा हृदय धडकन लगा। मो भा उठार वेठी था। वह भयानक आगमण मर नाना के ही घर पर हुआ था। रहमतों, मिरजा और मामदय ने कुछ काल तप उन लागा का राका, एक भापण काण्ड उपस्थित हुआ। हम मांबटियां एक-दूसरे के गल स लिपटी हुई थर-थर कांप रहा थी। रान का भी साहस न हाता था । एक क्षण के लिए बाहर रा वाताहत शाअब उस काठरी क रिवाढ तोड जान लगे, जिसम हम लाग थे । भयानम शब्द स निवाडे टूटकर गिरे । मरी माँ न गाहम विया, वह उन लागा से बाली-तुम लाग वया चाहत नवावा का माल दा वावी ! बताआ कहाँ है ? एा न रहा । मरी माँ गाली --हम लागा की नवावी उसा दिन गई, जव मुगला वा राज्य गया । अब क्या है, किसा तरह दिन काट रहे है। यह पाजा भला बताएगा-बहकर दा नर पिशाचा न उस घमाटा । वह विपत्ति की सताई मरी माँ मूच्छित हो गई, पर डाकुओभ स एव न पहानकल कर रहा है और उसी अवस्था म उसे पाटन लग। पर वह पिर न वानी । मैं अवाक यान म यांप रही थी। मैं भी मूर्छित हो रही थीरि मर जाना म मुनाइ पडा-इस न छुगा, मैं इस दख लूगा । में अवत थी। ___इसी झापडी व एक कोन म मेरी जाँख खुली । मैं भय स अधमरी हो रही थी। मुये प्यास लगी था । आठ चाटन लगी। एक सालह वरस युवक न मुझे थोडा दूध पिनाया और कहा-घबराआ न, तुम्ह कोई डर नही है। -मुझे आश्वासन मिला । म उठ बैठी । मैंन दया, उस युवव को आँखो में मर लिए स्नेह है । हम दाना के मन म प्रेम का पड्यत्र चलने लगा और उस सोलह बरम क वदन गूजर को महानुभूति उसम उत्तेजना उत्पत कर रही थी। कई दिना तक जब मैं पिता और माता का ध्यान करते राती, ता वदन मरे आँसू पोछता और मुझे समझाता । अब धीर-धीरे मैं उसके साथ जगत के अचलो म घूमन लगी। ककाल १५३