पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/१८२

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गूजरो न नवाव का नाम सुनकर बहुत धन की आशा मे डाका डाला था, पर कुछ हाथ न लगा। वदन का पिता सरदार था । वह प्राय कहता-मैंने इस बार व्यर्थ इतनी हत्या की। अच्छा मैं इस लडकी को जगल को रानी बनाऊँगा। वदन सचमुच मुझस स्नेह करता । उसन कितने ही गूजर कन्याआ के ब्याह लौटा दिय, उसके पिता ने भी कुछ न कहा । हम लोगो का स्नह देखकर वह अपने अपराधो का प्रायश्चित्त करना चाहता था, परन्तु बाधक था हम लोगो का धर्म । बदन ने कहा-हम लोगो को इससे क्या? तुम जैसे चाहा भगवान का मानो, मैं जिसक सम्बन्ध में स्वय कुछ समझता ही नही, तव तुम्हे क्यो समझाऊँ। सचमुच वह इन बातो के समझाने की चेष्टा भी नही करता । वह पक्का गूजर जो पुराने सस्कार और आचार चले आये थे-उन्हा कुल-परम्परा के कामो के कर लेने से कृतकृत्य हो जाता । मैं इस्लाम के अनुसार प्रार्थना करती, पर इससे हम लागो के मन म सदेह न हुआ। हमारे प्रेम ने हम लोगो को एक बन्धन मे वाध दिया और जीवन कोमल होकर चलने लगा । वदन ने अपना पैतृक व्यवसाय न छोडा, मै उससे केवल इसी वात से असन्तुष्ट रहती। यौवन की पहली ऋतु हम लोगो के लिए जगली उपहार ले कर आई । मन म नवावी का नशा और माता की सरल सीख-इधर गूजर पति की कठोर दिनचर्या । एक विचित्र सम्मलन था। फिर भी में अपना जीवन विताने लगी बेटी गाला । तू जिस अवस्था म रह, जगतपिता को न भूल ? राजा कगाल __ हात है और कगाल राजा हो जाते हैं, पर वह सबका मालिक अपने सिंहासन पर अटल बैठा रहता है । जिसे हृदय देना, उसी को शरीर अर्पण करना-उसम एकनिष्ठा बनाय रखना । मै बरावर जायसी की 'पद्मावत' पढ़ा करती है। वह स्त्रियों के लिए तो जीवन-यात्रा में पथ प्रदर्शक है । स्त्रिया को प्रेम करने के पहल यह सोच लना चाहिए-मैं पद्मावतो हो सकती हूं कि नही ? गाला । ससार दुख से भरा है। सुख के छोटे कही से परमपिता की दया से आ जाते है । उसकी चिन्ता न करना, उसके न पाने से दुख भी न मानना। मैंने अपने कठोर और भीषण पति की सेवा सचाई से की है, और चाहती हूँ कि तू भी मरी जैसी हो । परमपिता तरा मगल करे। पद्मावत पढना कभी न छोडना । उसके गूढ तत्त्व जो मैं तुझे बरावर समझाती आई हूँ, तेरी जीवन-यात्रा की मधुरता और कोमलता से भर दगे । अन्त में फिर तेरे लिए मैं प्राधना करती हूँ-तू मुखी रहे । १५४ प्रसाद वाङ्मय