पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/१८३

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नय न पुस्तक बन्द करते हुए एक दार्थ नि श्वास लिया । उसकी सचित स्नह राशि म उस राजवश की जगली लडकी के लिए हलचल मच गई । विरस जीवन म एक नवीन स्फूर्ति हुई । वह हसते हुए गाला के पास पहुचा । गाला इस समय अपन नय बुलबुल का चारा द रही थी। पढ चुकी कहानी अच्छी है न ? --गाला न पूछा। अडी करुण और हृदय में टीस उत्पन करनवाली कहानी है गाला । तुम्हारा सम्बव दिल्ली के राज सिंहासन से है-आश्चय ! आश्चय किस बात का नये ? क्या तुम समझत हा कि यह कोई बड़ी भारी घटना है । कितन राजरक्तपूर्ण शरीर परिश्रम करते-करते मर पच गये-उस अनन्त अनलशिखा मे-जहाँ चरम शीतलता है, परम विधाम है वहाँ किसी तरह पहुँच जाना ही तो इस जीवन का लक्ष्य है। नये अवाक होकर उसका मुंह देखने नगा । गाला सरल जीवन की जैसे प्राथमिक प्रतिमा थी। नये ने साहस कर पूछा-फिर गाला जीवन के प्रकारो म तुम्हारे लिए चुनाव का कोई विषय नहीं उसे बिताने के लिए कोई निश्चित कार्यक्रम नही । है ता नये । समाप के प्राणियो म संवा भाव सबस स्नह-सम्बध रखना यह क्या मनुष्य के लिए पयाप्त कर्त्तव्य नही । ___तुम अनायास ही इस जगल में पाठशाला खोतकर यहाँ के दुदान्त प्राणियो के मन मे कामल मानव भाव भर सकती हो । ___आहो । तुमन सुना नही सोकरी में एक माधु आया है हिन्दू धम का तत्त्व समझाने के लिए। जगली वालका को एक पाठशाला उसने खोन दी है । वह कभी-कभी यहा भी आता है मुझस भी कुछ ले जाता है पर मै दखती हूँ कि मनुष्य वडा ढोगी जीव है—वह दूसरो को वहीं सिखाने का उद्योग करता है जिसे स्वय कभी भी नही समझता। मुझे यह नही हचता | मेरे पुरखे तो बहुत पढे लिखे और समयदार थे उनके मन की ज्वाला कभी शान्त हुई ? यह एक विकट प्रश्न है गाला | जाता हूँ अभी मुझे घास करना है । यह बात तो मै धारे वीर समझने लगा हूँ कि शिक्षितो और अशिक्षितो के कर्मों में अतर नही है । जो कुछ भेद है वह उनक काम करने के ढग का ह । तो तुमन अभी अपनी कथा मुझे नही सुनाई। किसी अवसर पर सुनाऊगा-कहता हुआ नय चला गया । गाला चुपचाप अस्त होते हुए दिनकर को दख रही थी। बदन दूर से टहलता हुआ आ रहा था। आज उसका मुंह सदा की भाँति प्रसन न था । गाला ककाल १५५