पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/१८८

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के न रह जायगे । इतना परिश्रम करके तो जीने के लिए मनुष्य कोई भी काम कर सकता है। बाबा । पढाई मब कामा का मुधार कर करना सिखाती है । यह ता बडा अच्छा काम है, देखिए मगल क त्याग और परिश्रम को | -गाला ने कहा। हा, तो यह अच्छी बात है । कह कर बदन चुप हो रहा ।। मगल ने कहा-ठाकुर । मैं तो चाहता है कि एक लडकिया की भी पाठशाला हो जाती, पर उनके लिए स्त्री अध्यापिका की आवश्यकता होगी, और वह दुर्लभ है। ____गाला जो यह दृश्य देखकर बहुत उत्साहित हा रही थी बोली-वावा । तुम कहते तो मैं ही लडकियो का पढाती । बदन न आश्चय से गाला की ओर देखा पर वह कहती ही रही-~-जगल म तो मेग मन भी नहीं लगता । मैं बहुत विचार कर चुकी है मेरा उस खारी नदी के पहाडी अचल मे जीवन भर निभने का नही । तो क्या तू मुझे छोडकर कहते-कहते वदन का हृदय भर उठा आख डवडबा आई । वह दुर्दान्त मनुष्य मोम के समान पिघलन लगा । गाला ने कहा---- नही बाबा तुम भी मेरे ही साथ रहो न । बदन' न कहा-ऐसा नही हो सकता गाला | तुझे मै अधिक-म-अधिक चाहता है, पर कुछ और भी ऐसी वस्तुएं है जिन्हे मै इस जीवन म छाड नहीं सकता। मै समझता हूँ, उनस पीछा छुड़ा लने की तेरी भीतरी इच्छा है क्यो ? गाला ने कहा- अच्छा तो घर चलकर इस पर फिर विचार किया जायगा। -मगल के सामने वह इस विवाद को बन्द कर देन के लिए अधीर थी। रूठन के स्वर में वदन ने कहा-जरा ऐसी ही इच्छा है तो घर ही न चल । --यह बात कुछ कडी और अचानक वदन के मुह से निकल पड़ी। मगल जल के लिए इसी बीच से चला गया था तो भी गाला बहुत घायल हो गई। हथेलिया पर मुंह धरे हुए वह टपाटप आंसू गिरान लगी, पर न जान क्या उस गूजर का मन अधिक कठोर हो गया था । सान्त्वना का एक शब्द भी न निकला। वह तब तक चुप रहा, जव तर मगन ने आकर कुछ मिठाई और जल सामन नही रखखा । मिठाई देखते ही वदन योन उठा-मुझे यह नहीं चाहिए। यह जल का लाटा उठाकर चुल्लू मे पी गया और उठ खडा हुआ मगल की ओर देखता हुआ बाला-कई मीन जाना है, बूढा आदमी हूँ | ता चलता है। वह सीढियाँ उतरन लगा । गाना म उसन चलन के लिए नहीं कहा । वह बैठी रही। क्षाभ स भरी हुई तडप रही थी, पर ज्योही उसन दखा कि, वदन टेकरी से उतर १६० प्रसाद वाङमय