पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/१९७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

-- इधर धीचद्र का माहन स हलमन रह गया था और चाची भी उसकी रसोई बनान का काम करती थी। वह हरद्वार से अयोध्या चली आई थी, क्याकि वहा उसका मन न लगा। चाची का वह रूप पाठक भूल न हांगे, जब वह हरद्वार में तारा के साथ रहती थी परन्तु तब में अब अन्तर था। मानव मनोवृत्तिया प्राय अपन लिए एक केन्द्र बना लिया करती है, जिसके चारा आर वह आशा और उत्साह से नाचती रहती हैं । चाची तारा के उस पुन को-जिसे यह अस्पताल में छोडकर चली आई थी-अपना ध्रुव नक्षत्र समझन लगी थी। मोहन को पालने के लिए उसने अधिकारिया स मांग लिया था। पगली और चाची जिम घाट पर बैठी थी, वहा एक अधा भिखारी लठिया टेकता हुआ, उन लागो क समीप आया। उगने कहा--भीख दो वावा । इस जन्म म कितने अपराध किये है हे भगवान् । अभी मौत भी नही आती। चाची चमक उठी । एक बार उसे ध्यान में देखन नगी। सहमा पगली ने कहा- पर, तुम मथुरा स यहाँ भी पहुँच । तीर्थों में घूमता हूँ बेटी । अपना प्रायश्चित्त करन क लिए, दूसरा जन्म बनाने के लिए 1 इतनी ही ता आशा है--भिखारी न कहा । प्रगली उत्तेजित हा उठी। अभी उसके मस्तिष्क की दुर्वलता गई न थी। उसन समीप जाकर उस झकझार कर पूछा-गोविदी चौबाइन का पाली हुई बटी का तुम भून गय । पण्डित, मैं वही हूँ, तुम वताआगे मरी मों का ? अरे घृणित नीच अन्ध | मरी माता स मुझे एडानवाल हत्यारे । तू कितना निष्ठुर है ! क्षमा कर बटी । क्षमा म भगवान् की शक्ति है, उनकी अनुकम्पा है। मैन अपराध किया था, उसी का ता फल भाग रहा हूँ | यदि तू सचमुच वही गाविदी चौबाइन को पानी हुई लडकी है, तो तू प्रसन हा जा-अपन अभिशाप की ज्वाला म मुये जलता हुमा दखकर प्रसन हा जा | बेटी, हरद्वार तक ता तेरी मा का पता था, पर मैं बहुत दिन से नहीं जानता कि वह अब कहा है | नन्दा कहा है - यह बताने में अब अन्धा रामदव असमथ है बेटी। चाची ने उठकर सहसा उस अन्धे का हाथ पकडकर कहा--रामदव । । रामदेव न एक बार अपनी अन्धी आँखो से देखन को भरपूर चेष्टा को, फिर विफल होकर आसू बहाते हुए वोला---नन्दा का-सा स्वर सुनाई पड़ता है। नदा, तुम्ही हा ? वोलो | हरद्वार से तुम यहाँ आ गई हो ? हे राम | आज सुमन मेरा अपराध क्षमा किया,-नन्दो । यही तुम्हारी लड़की है । रामदेव की फूटो आखो स आसू बह रह थे। 7) ककाल . १६६