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थी। नियति की इस आकस्मिक विडम्बना ने उसे अधीर बना दिया। जिम घण्टी के कारण विजय अपने सुखमय संसार को यो वैठा और किशोरी ने अपने पुत्र विजय को; उसी घण्टी का भाई आज उसके सर्वस्व का मालिक है, उत्तराधिकारी है । दुर्दव का यह कैसा परिहास है ! वह छटपटाने लगी, मसोसने लगी; परन्तु अव कर ही क्या सकती थो। धर्म के विधान से दत्तक पुत्र उसका अधिकारी था और विजय नियम के विधान से निर्वासित-मृतक-तुल्य !