पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२०१

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4 भगलदव की पाठशाला मे अव दो विभाग हैं--एक लडको का, दूसरा लड कियो का । गाला लडकियो की शिक्षा का प्रबन्ध करती। वह अव एक प्रभावशाली गम्भीर युवती दिखलाई पडती जिसके चारो आर पवित्रता और ब्रह्मचय का मण्डल घिरा रहता । बहुत-से लाग जो पाठशाला में आते, वे इस जोडी को आश्चर्य से देखते । पाठशाला के बडे छप्पर के पास ही गाला की भी शापडी थी, जिसम एक चटाई तीन-चार कपडे, एक पानी का वरतन और कुछ पुस्तकें था। गाला एक पुस्तक मनोयोग से पढ रही था । कुछ पन्न उलटते हुए उसने सन्तुष्ट होकर पुस्तक धर दी। वह सामने की सड़क की ओर देखने लगी । फिर भी कुछ ममझ म न आया । उसने वडवडाते हुए कहा-पाठ्यक्रम इतना असम्बद्ध है कि यह मनाविकास म महायक होने के बदले, स्वय भार हो जायगा । वह फिर पुस्तक पढन लगी-'रानी ने उन पर कृपा दिखाते हुए छाड दिया और राजा न भी रानी की उदारता पर हमकर प्रसनता प्रकट की 'राजा और रानी, इसम स्त्री और पुरुष बनाने का, संसार का सहनशील साझीदार होने का, सन्देश कही नहीं। केवल महत्ता का प्रदशन, मन पर अनुचित प्रभाव का बोश | उसन झुंझलाकर पुस्तक पटककर एक नि श्वास लिया । उसे बदन का स्मरण हुआ, बाबा'कह कर एक वार चिहुँक उठा। वह अपनी ही भर्त्सना प्रारम्भ कर चुकी थी । महसा मगलदव मुस्कराता हुआ सामन दिखाई पडा। मिट्टी १ दीप की लो भक-भक करती हुई जलने लगी। तुमन कई दिन लगा दिये, मैं ता अब सोने जा रही थी। । क्या करूं, आश्रम की एक स्त्री पर हत्या का भयानक अभियोग था। गुरुदेव न उसकी सहायता के लिए बुलाया था। तुम्हारा आम हत्यारा को भी सहायता करता है । नही गाला । वह हत्या उसने नही की था, वस्तुत एक दूसरे पुरुप न की, पर, वह स्त्री उस बचाना चाहती है । क्यो? ककाल १७३