सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

किस भावो से भर गया। मानो जन्म-भर की उसकी कठोरता तीन पाप लगने से बरफ के समान गलने लगो हो । उसने यमुना स रोते हुए कहा- यमुना, नहीं-नही-बेटी तारा | मुझे भी क्षमा कर दे | मैन जीवन-भर बहुत-सी बुरी बाते की है, पर जा कठोरता तेरे साथ हुई है, वह नरक की ऑच स मी तीन दाह उत्पन कर रही है । वेटी । मै मगल का उसी समय पहचान गई, जब उसन अँगरेज से मेरी घण्टी को छुडाया था, पर वह न पहचान सका, उसे वे बाते भूल गई थी, तिसपर मरे साथ मरी वटी थी, जिसकी वह कल्पना भी नहीं कर सकता था। वह छलिया मगल जाज एक दूसरी स्त्री स व्याह करन का सुखचिन्ता मे निमग्न है । मै जल उठती हूँ बटी 1 मैं उसका सव भण्डाफोड कर दना चाहती थी, पर तुझे भी यही चुपचाप देखकर मै कुछ न कर सकी। हाय रे पुरुष । नही चाची | अब वह दिन चाह लाट आय, पर वह हृदय कहा स जावेगा। मगल का दुख पहुंचाकर आधात द सकूँगी, अपन लिए सुख यहाँ स नाऊंगी। चाची । तुम मरे दु खा को साक्षी हो, मन क्वल एक अपराध किया ह-~-वह यही कि प्रम करत समय साक्षी नही इकट्ठा कर लिया था, और कुछ मन्त्रा स कुछ लोगा की जीभ पर उसका उल्लेख नहा कर लिया था, पर किया या प्रम । चाची | यदि उसका यही पुरस्कार है, तो मैं उस स्वीकार करती हूँ |--यमुना न कहा। पुरुष कितना वडा ढागी है वटी । वह हृदय के विरुद्ध हो ता जीभ से कहता ह । आश्चर्य है, उसे सत्य कहकर चिल्लाता है 1 --उत्तेजित चाची न कहा । पर मैं एक उत्कट अपराध की अभियुक्त ह चाची । आह मरा पन्द्रह दिन का वच्चा । मैं कितनी निर्दय हूँ। में उसी का ता फल भोग रही। मुझे किसी दूसरे न ठोकर लगाई और मैन दूसरे को ठुकराया। हाय | ससार अपराध करक इतना अपराध नहीं करता, जितना यह दूसरो को उपदेश दकर करता है । जा मगल ने मुझस किया, वही ता मैं हृदय के टुकडे से, अपन मे, कर चुकी हूँ। मैन सोचा था कि फांसी पर चढकर उसका प्रायश्चित कर सकूगी, पर डूबकर बची -~~-फॉसी म वची हाय-रे कठार नारी-जीवन ।। न जान मरे लाल का क्या ___ यमुना, नही-अब उस तारा कहना चाहिए--रा रही थी। उसकी आँखा म जितनी करुण कालिमा थी, उतनी कालिन्दी में कहाँ । ___चाची न उसको अश्रुधारा पाखत हुए कहा---वटी । तुम्हारा लाल जावित है, मुखी है। २०० प्रसाद वाडमय