पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२२९

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तारा चिल्ला पडी उसने कहा-सच कहती हा चाची ? सच तारा । वह काशी के एक धनी श्राच द्र और किशोरी बहू का दत्तक पुत्र है मैन उस वहा दिया है। क्या इसक लिए तुम मुझे क्षमा करोगी वेटी? तुमन मुये जिला लिया जहा । मरी चाची तुम मरी उस जम की माता हा अव म मुखी हूँ। वह जस एक क्षण के लिए पागल हा गइ । चाची क गल से लिपट कर रो उठी । वह राना आनन्द का या । चाची न उसे सान्त्वना दा । इधर घण्टी और ततिका भा पास आ रही था । तारा न धीर स कहा-मरी विनती है अभी इस बात का किसो स न कहनायह मरा गुप्त धन हे। चाची न कहा-यमुना साक्षा हे । चारा के मुख पर प्रसनता थी । चारा का हृदय हल्का था। सब स्नान करके दूसरी बात करती हुई आम लौटी। लतिका न कहा-आपनी सम्पत्ति सघ का दती हूँ वह स्त्रिया की स्वयसविका की पाठशाला चनाव । मैं उसकी पहली छात्रा होऊगी। और तुम घण्टी ___घण्टी न कहा-मै भो । वन स्त्रिया का स्वय घर पर जाकर अपनी दुखिया बहना की सवा करनी चाहिए । पुरुप उह उतनी ही शिक्षा और ज्ञान देना चाहत है जितना उनके स्वार्थ म वाधक न हो। घरा क भीतर अधकार है धर्म के नाम पर ढाग की पूजा है और शील तथा आचार के नाम पर रूढिया की। बहन अत्याचार के परद म छिपाई गइ है उनकी सवा करूगी। धात्री उपदेशिका धम प्रचारिका सहचारिणी बनकर उनकी सेवा करूंगी। सब प्रसन्न मन स आश्रम म पहुच गई । कपाल २०१