पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२३४

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दन के उपयुक्त बने-यही मेरी प्रार्थना है। ___ आनन्द की करतलध्वनि हुई। मगलदव बैठा । गोस्वामीजी ने उठकर कहा--आज आप लोगो को एक और हर्ष-समाचार सुनाऊंगा। मुनाऊँगा ही नही, आप लोग उस आनन्द क साक्षी होंगे। मरे शिष्य मगल देव का, ब्रह्मचय को समाप्ति करके गृहस्थाश्रम मे प्रवेश करन का शुभ मुहूर्त भी आज ही है । यह कानन-वासिनी गुजर-वालिका गाला अपन सत्साहस और दान से सोकरी में एक वालिका-विद्यालय चला रही है। इसमे मगलदेव और गाला दोनो का हाथ है। में इन दोनो पवित्र हाथो को एक वधन म वोधता हूँ, जिसमें सम्मिलित शक्ति स ये लोग मानव सेवा में अग्रसर हा और यह परिणय समाज के लिए आदर्श हो। कोलाहल मच गया, सब लोग गाला को देखने के लिए उत्सुक हुए। सलज्जा गाला, गोस्वामीजी के सकेत से उठकर मामने आई। कृष्णशरण ने प्रतिमा से दो माला लेकर दोनो को पहना दी। हर्प कोलाहल हो रहा था। उसी म किसी का डरावना कष्ट मुनाई पडा-- अच्छा तो है । चगेज और वर्धनो की सन्तानो की क्या ही सुन्दर गोडी है ।। गाला और मगलदव न चौककर देखा-पर उस भीड मे कहने वाला न दिखाई पड़ा। भीड के पीछे कम्बर ओढे, एक घनी दाढी मूछ वाले युवा का कन्धा पाडकर तारा न कहा--विजय बाबू | आप क्या प्राण देगे । हटिए यहा स, अभी वह घटना टटको है। ___ नय, नही, विजय ने घूमकर कहा-यमुना । प्राण ता बच ही गया, पर यह मनुष्य तारा ने बात काटकर कहा--बडा ढागी है पाखण्डी है यही न कहना चाहत है आप । हान दीजिए, आप ससार भर क ठेकदार नही-चलिए । तारा उसका हाथ पकडकर अन्धकार की ओर ल चली। २०६ पसाद वाङ्मय