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किशोरी । मैंने खोजकर देखा कि मैंने जिसको सबस वडा अपराधी समझा था, वही सवस अधिक पवित्र है ! वही यमुना तुम्हारी दासी । तुम जानती होगी कि तुम्हारे अन्न से पलन क कारण, विजय क लिए फांसी पर चढ़ने जा रही थी, और मैं-जिसे विजय पर ममत्व था-दूर-दूर खडा धन से सहायता करना चाहता था। __भगवान् ने यमुना को भी बचाया, यद्यपि विजय का पता नहीं । हाँ, एक बात और सुनागी, मैं आज इमे स्पष्ट कर देना चाहता हूँ । हरद्वार वाली विधवा रामा को तुम न भूली होगी, वह तारा (यमुना) उसी के गर्भ से उत्पन्न हुई है। मैंने उसकी सहायता करनी चाही और लगा था कि निकट भविष्य म उसकी सासारिक स्थिति सुधार दू । इसीलिए मैं भारत-सघ म लगा, सार्वजनिक कामो म सहयोग करन लगा, परन्तु कहना न होगा कि इसम मैंने वडा ढोग पाया। गम्भीर मुद्रा का अभिनय करके अनक रूपो म उन्ही व्यक्तिगत दुगचारो को छिपाना पडता है, सामूहिक रूप से वही मनोवृत्ति काम करती हुई दिखाइ पडती है । सघो म, समाजो म, मेरी थद्धा न रही। मैं विश्वास करने लगा उस श्रुतिवाणी में वि देवता जो अप्रत्यक्ष ह, मानव बुद्धि स दूर ऊपर है, सत्य है और मनुष्य अनृत है । चेष्टा करके भी उस सत्य को जो प्राप्त करेगा । उस मनुष्य को मैं कई जमो तक केवल नमस्कार करक अपन को कृतकृत्य समझूगा । मरे सघ म लगने का मूल कारण वही यमुना थी । केवल धर्माचरण ही न था, इसे स्वीकार करने मे कोई सकोच नही, परन्तु वह विजय के समान ही तो उच्छृङ्खल है, वह अभिमानी चली गई । मैं सोचता हूँ कि मैने अपन दाना का खो दिया। अपने दोनो पर ---तुम हंसोगी, किन्तु ये चाहे मरे न हो, तब भी मुझे ऐसी शका हो रही है कि तारा की माता रामा से मेरा अवैध सम्बन्ध अपने को अलग नही रख सकता। मैंने भगवान् की ओर से मुंह मोडकर मिटटी क खिलौने म मन नगाया था । वे ही मेरी आर दखकर, मुस्कराते हुए त्याग का परिचय दकर चले गये और मैं कुछ टुकडा को–चीथडा को-सम्हालने-मुलझाने में व्यस्त बैठा रहा। किशोरी । मुना है कि सब छीन लेते है भगवान् मनुष्य से ठीक उसी प्रकार जैस पिता खिलवाडी लडके के हाथ से खिलौना 1 जिससे वह पढने लिखने मे मन उगाये । मैं अब यही समझता हूँ कि यह परमपिता का मेरी जोर सकेत है। ___ हो या न हो, पर मैं जानता हूँ कि उसम क्षमा की क्षमता है, मेरे हृदय की प्यास-ओफ 1 कितनी भीषण है-वह अनात तृष्णा । —ससार के कितने ही कीचडो पर लहरानेवाली जल की पतली तहो मे शूकरा की तरह लोट चुकी है । ककाल २०६ १४