पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२३९

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पत्र पढकर किशोरी ने रख दिया । उसके दुर्बल श्वास उत्तेजित हा उठे, वह फूट फूटकर रोने लगी। गरमी के दिन थे। दस ही वजे पवन मे ताप हो चला था । श्रीचन्द्र ने आकर कहा-पखा खीचने के लिए दासी मिल गई है यही रहगी केवल खानाकपडा लेगी। पीछे खडी दो करुण आँखें घूघट म झाक रही थी। श्रीचन्द्र चले गये । दासी आई, पास आकर किशोरी की खाट पकडकर बैठ गई। किशारी न आमू पाछते हुए उसकी ओर देखा-वह यमुना -तारा थी । कमाल २११