पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२४४

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श्रीचन्द्र न कहा-पगली, क्या करेगी? वह दौडी हुई विजय क पास गई। उसन खड हाकर उसे दखा, फिर पास वैठकर दखा । दोना ऑखो से आँसू की धारा वह चली। यमुना, दूर खडे श्रीचन्द्र के पास आई। वाली बाबूजी, मर वतन म से काट लेना, इसी समय दीजिए मै जन्म-भर यह ऋण भरूंगी। है क्या, मैं भी मुनं । -श्रीचन्द्र ने कहा । मेरा एक भाई था, यही भीख मांगता था बाबू ! आज मरा पड़ा है, उसका सस्कार तो करा दं। वह रो रही थी। मोहन न कहा-दाई राती है वावूजी, और तुम दस-ठा रुपये नहीं देते। थीचन्द्र ने दस का नाट निकाल कर दिया। यमुना प्रसन्नता स बाली-- मेरी भी आयु लेकर जिया मरे लाल । वह शव के पास चल पडी, परन्तु उस सस्कार के लिए कुछ लाग भी चाहिए, वे कहाँ से आवे । यमुना मुंह फिराकर चुपचाप खडी थी। घण्टी चारा आर देखती हुई फिर वही आई । उसके साथ चार स्वयसवक थे। स्वयसेवको ने पूछा- यही न देवीजी? हाँ-कहकर घण्टी न देखा कि एक स्त्री घूघट काढ, दस रुपय का नोट स्वयसवक क हाथ म दे रही है। घण्टी न कहा-दान है इस पुण्यभागिनी काल नो, जाकर इससे सामान लाकर मृतक-सस्कार करवा दो। स्वयसवक ने उस ले लिया। वह स्त्री वही बैठी थी। इतन म मगलदेव के माथ गाला भी आई । मगल ने कहा--घण्टी 1 मैं तुम्हारी इस तत्परता स बडा प्रसन्न हुला । अच्छा अब चलो, अभी बहुत-सा काम बाकी है। मनुष्य के हिसाब-किताव म काम हो तो बाको पडे मिलते है-कहकर घटी साचन लगी। फिर उस शव को दीन दशा मगल का सकेत स दिखलाई । मगल ने दखा---एक स्त्री पास ही मलिन वसन म बैठी है । उसका पूंघट आंसुआ स भाग गया है। और निराबय पडा है, एक - ककाल २१६ प्रसाद वाश्मय