पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२४७

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प्रथम खण्ड क्यो वेटो | मधुवा आज कितने पैस ले आया? नौ आने, बापू ।' कुल नौ आन | और कुछ नही? पांच सेर आटा भी दे गया है। कहता था एक रुपय का इतना ही मिला। वाह रे समय–कहकर वुडढा एक वार चित होकर सास लेने लगा। कुतूहल स लडकी ने पूछा-कैसा समय बापू? बुडढा चुप रहा। यौवन क व्यजन दिखायी दन स क्या हुआ, अव भी उसका मन दूध का धोया है । उसे लडकी कहना ही अधिक सगत होगा। उसने फिर पूछा–कैसा समय बापू ? चिथड़ो स लिपटा हुआ लम्बा-चौडा, अस्थि पजर झनझना उठा खाँसकर उसने कहा-जिस भयानक अकाल का स्मरण करके जाज भी रोगटे खडे हो जात है जिस पिशाच की अग्नि-क्रीडा म खलती हुई तुझको मैन पाया था, वही सवत ५५ का अकाल आज के सुकाल स भी सदय था-कामल था। तब भी आठ सर का अन्न बिकता था। आज पाच सेर को बिक्री में भी कही जू नही रगती, जैससब धीरे-धीरे दम तोड़ रहे हैं । कोई अकाल कहकर चिल्लाता नही । आह ! मैं भूल रहा हूँ। कितने ही मनुष्य तभी से एक बार भोजन करन के अभ्यासी हा गय है । जान द, होगा कुछ वा । जो सामने आवे, उस झेलना चाहिए। बञ्जो, मटकी म डेढ पाव दूध, चार कडा पर गरम कर रही थी। उफनात हुए दूध को उतार कर उसन कुतूहल से पूछा- बापू ! उस अकाल मे तुमन मुझे पाया था । ला, दूध पाकर मुये वह पूरी कथा मुनाआ। बुड्ढे न करवट बदलकर, दूध लेते हुए, बञ्जा का आँखा मसलत हुए आश्चय को देखा । वह कुछ सोचता हुआ दूध पीने लगा। तितलो २१६