पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२४८

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थोडा-सा पीकर उसन पूछा-अरे तून दूध अपने लिए रख लिया है ? वञ्जो चुप रही। बुड्ढा खडखडा उठा-तू वडी पाजी है, रोटी किससे खायगी ____ सिर झुकाय हुए, बञ्जो न कहा-नमक और तल से मुझे राटी अच्छी लगती है बापू । वचा हुआ दूध पीकर बुड्ढा फिर कहह्न लगा--यही समय है, देखती है न । गाय डेढ पाव दूध दती है ! मुझे तो आश्चर्य होता है कि उन सूखो ठठरिया में से इतना दूध भी कैसे निकलता है ! ____मधुवा दबे पाव आकर उसी झापडी क एक काने म खडा हो गया । वुड्ढे न उसकी ओर देखकर पूछा--मधुवा, आज तू क्या-क्या ले गया था? डेढ सर धुमची, एक वोझा महुआ का पत्ता और एक खाचा कडा बाबाजी। --मधुवा ने हाथ जोड़ कर कहा । इन सबका दाम एक रुपया नौ आना ही मिला ? चार पैस बन्धू को मजूरी में दिये थे। अभी दो सर घुमची और हागी बापू । बहुत-सी फलियाँ बनबेरी के झुरमुट म हैं, झड जाने पर उन्हे वटार लूगी । --बञ्जो ने कहा । वुड्ढा मुस्कराया । फिर उसने कहा-मधुवा ' तू गाया का अच्छी तरह चराता नही बेटा । देख ता, धवली कितनी दुबली हो गयी है । ____ कहा घराव कुछ ऊसर परती कही चरन क लिए धची भी है ? --मधुवा ने कहा । बञ्जो अपनी भूरी लटा को हटाते हुए बोली-मधुवा गगा म घटा नहाता है बापू | गाय अपने मन स चरा करती है । यह जब बुलाता है, तभी सब चली आती हैं। बञ्जो की बात न सुनत हुए बाबाजा न कहा—सू ठीक कहता है मधुवा । पशुओ का खात-खाते मनुष्य, पशुओ के भोजन की जगह भी खाने लगे । आह । } कितना इनका पेट बढ़ गया है । वाह रे समय ! | मधुवा धीच ही मे बोल उठा-बञ्जो, वनिया ने कहा है कि सरफाका की पत्ती दे जाना, अब मैं जाता हूँ। कहकर वह झोपड़ी के बाहर चला गया । सन्ध्या गाव की सीमा म धीरे-धीरे आन लगी। अन्धकार के साथ ही ठड बढ चली। गगा की कछार की झाडिया म सनाटा भरन लगा। नाला के करारा म चरवाहा के गीत गूंज रहे थे । २२० प्रसाद वाङ्मय