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वो समझ गयी कि कोई शिकार खलने वालो मे स इधर आ गया है। उसके हृदय म विरक्ति हुई.-उँह, शिकारी पर दया दिखाने की क्या आवश्यकता? भटकने दो। ___ वह घूम कर उसी मैदान म बैठी हुई एक श्यामा गौ को देखने लगी । बडा मधुर शब्द सुन पडा-चौवेजी । आप कहाँ हैं ? अब बञ्जा का बाध्य होकर उधर जाना पड़ा। पहल काटा मे फंसने वाले व्यक्ति ने चिल्लाकर कहा-खडा रहिए इधर नही-ॐहूँ-ॐ। उसी नीम के नीचे ठहरिए मैं आता हूँ | इधर बडा ऊंचा-नीचा है। चौबेजी यहाँ तो मिट्टी काटकर बड़ी अच्छी सीढियों बनी है, मैं तो उन्ही से ऊपर आई हूँ!-- रमणी के कोमल कठ स यह मुन पडा । बञ्जो को उसकी मिठास न अपनी ओर आकृष्ट किया। जगली हिरन क समान कान उठाकर वह सुनने लगी। झाडिया के रौदे जान का शब्द हुआ । फिर वही पहिला व्यक्ति वोल उठालीजिये, मैं तो किसी तरह आ पहुँचा अब गिरा-तब गिरा राम-राम । कैसी सासत । सरकार से मैं कह रहा था कि मुझे न ले चलिए। मैं यही चूडा-मटर की खिचडी वनाऊँगा । पर आपने भी जब कहा तब ता मुझे आना ही पड़ा । भला आप क्यो चली आई ? इन्द्रदेव ने कहा कि सुर्खाब इधर बहुत है मैं उनक मुलायम परो के लिए आई । सच चौबेजी, लालच में मै चली आई। किन्तु छरों स उनका मरना देखन मे मुझे मुख ता न मिला । आह । कितना निधडक वे गगा के किनारे टहलते थे । उन' पर विनचस्टर-रिपीटर के छरों की चोट । बिल्कुल ठीक नही । मैं आज ही इन्द्रदेव को शिकार खेलने से रोकूगी---आज ही। अब किधर चला जाय ?-उत्तर में किसी ने कहा। चौबजी न डग बढाकर कहा---मेरे पीछे-पीछे चली आइए । किन्तु मिट्टी बह जाने से मोटी जड नीम की उभड आई थी, उसन ऐसी करारी ठाकर लगाई कि चौवेजी मुंह के बल गिरे । रमणी चिल्ला उठी । उस धमाक और चिल्लाहट ने बञ्जो का विचलित कर दिया। वह कटीली झाडी वो खीचवर अंधेरे में भी ठीक-ठीक उसी सीढी के पास जाकर खडी हो गई, जिसके पास नीम का वृक्ष था। ___ उसने दखा कि चौवेजी बतरह गिर है। उन घुटन म चोट आ गई है। वह स्वय नही उठ सकत । मुकुमारी मुन्दरी के बूते के बाहर को यह बात थी। २२२ प्रसाद वाङ्मय