पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२५१

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बञ्जो ने भी हाथ लगा दिया । चौवेजो किसी तरह काखते हुए उठे । अन्धकार के साथ-साथ सर्दी वढने लगी थी। बञ्जो की सहायता से सुन्दरी, चौबेजी को लिवा ले नली, पर कहाँ ? यह तो बञ्जो ही जानती थी। झापडी म बुड्ढा पुकार रहा था--वो। वो । | बडी पगली है। कहाँ धूम रही है । बञ्जा, चली आ ! झुरमुट म घुसते हुए चौवेजी तो कराहते थे, पर मुन्दरी उस वन-विह गिनी की ओर आंख गडाकर दख रही थी और अभ्यास के अनुसार धन्यवाद भी दे रही थी। दूर से किसी को पुकार सुन पडीशैला । शैला ।।। ये तीना, झाडियो की दीवार पार करवे, मैदान म आ गय थे । वझा सहार चौवेजी को छाडकर शैला फिरहरी की तरह घूम पडी। वह नीम के नीचे खडी होकर कहन लगी-इसी सोढी स इन्द्रदेव - बहुत ठीक सीढी है । हाँ, संभालकर चल जाओ। चौवेजी का तो घुटना ही टूट गया है । हां, ठीक है, चल आआ। वही-कही जड बुरी तरह से निकल आई है-उह बचाकर आना। नीचे से इन्द्रदव ने कहा-सच कहना शला ! क्या चौवे का घुटना टूट गया? ओहो तो कैम वह इतनी दूर चलेगा | नहीं-नही, तुम हंसी करती हा । ऊपर आकर दख लो नही भी टूट सकता है । नहीं भी टूट सकता है ? वाह । यह एक ही रही। अच्छा ला, मैं आ ही पहुँचा। एक लम्बा-सा युवक, कधे पर वन्दूक रख, ऊपर चढ़ रहा था । शैरा, नाम के नीचे खडी, गगा क करारे की आर झांक रही थी-यह इन्द्रदेव को मावधान करती थी-ठोकरा स और ठोक मार्ग से। तब तक उस युवक न हाथ बढाया-~दी हाथ मिले । नीम के नीचे खड होकर इद्रदव ने गैला के कोमल हाथा मा दवाकर कहा - बरारे की मिट्टी काट कर देहातियो न कामचलाऊ सीढियां अच्छी बना ली है। शैला । कितना मुन्दर दृश्य है। नीच धीरे धीरे गगा बह रही हैं, अधकार में मिली हुई उस पार के वृक्षा को श्रेणी क्षितिज को कोर म गाढी कालिमा की येल बना रही है, और ऊपर पहले चलकर चौवेजी को देख ला, फिर दृश्य देखना । -बीच ही में रोककर रोला ने कहा। तितली २२३