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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२६२

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चारो आर ऊंचे-ऊँचे खम्भा पर लम्बे-चौडे दालान, जिनसे सटे हुए सुन्दर कमरो मे सुखासन, उजली सज, मुन्दर लैम्प, बडे-बडे शीशे, टेबिल पर फूलदान अलमारिया मे सुनहली जिल्दो से मढी हुई पुस्तके-सभो कुछ उस छावनी म पर्याप्त है। आस-पास, दफ्तर के लिए, नौकरो के लिए तथा और भी कितने ही आवश्यक कामा के लिए छोटे-माटे घर बने है। शहर के मकान मे न जाकर, इन्द्रदेव ने विलायत से लौटकर यही रहना जा पसन्द किया है, उसके कई कारणो म इस कोठी की सुन्दर भूमिका और आस-पास का रमणीय वातावरण भी है । शैला के लिए तो दूसरी जगह कदापि उपयुक्त न हाती। छावनी के उत्तर नाले के किनारे ऊँचे चौतरे की हरी-हरी दूवा से भरी हुई भूमि पर कुर्सी का सिरा पकडे तन्मयता से वह नाले का गगा म मिलना देख रही थी । उसका लम्बा और ढीला गाउन मधुर पवन से आन्दोलित हो रहा था। कुशल शिल्पी के हाथो से बनी हुई संगमरमर की सौन्दर्य प्रतिमा-सी वह बडी भली मालूम हो रही थी। ____ दालान म चौबेजी उसके लिये चाय बना रहे थे । सायकाल का सूर्य अब लाल विम्ब-मात्र रह गया था, सो भी दूर की ऊंची हरियाली के नीचे जाना ही चाहता है । इन्द्रदव अभी तक नही आये थे। चाय ले आने मे चौबेजी और सुस्ती कर रहे थे। उनकी चाय शैला को बडी अच्छी लगी । वह चौबेजी के मसाले पर लटू थी। रामदीन न चाय की टबिल लाकर धर दी । शला की तन्मयता भग हुई । उसने मुस्कराते हुए, इन्द्रदेव से कुछ मधुर सम्भापण करने के लिए, मुंह फिराया, किन्तु इन्द्रदेव का न देखकर वह रामदीन स बाली—क्या अभी इन्द्रदेव नही आते हैं ? नटखट रामदीन हंसी छिपात हुए एक आँख का कोना दबाकर ओठ क कान का ऊपर चढा देता था । शैला उसे देखकर खूब हंसती, क्योकि रामदीन २३४ . प्रसाद वाङ्मय