पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२६१

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निकल आया। उसक पीछे वजा थी। शैला ने दौडकर उसका हाथ पकड लिया, और कहने लगी-आह ! तुम रात को चली आई, मैं तो खोज रही थी। तुम वडी नेक, । वो आश्चर्य स उसका मुंह देख रही थी। इन्द्र देव ने कहा-बुड्ढे । तुम बहुत वीमार हा न' हाँ सरकार । मुझे नहीं मालूम था, रात को आप उसका सोच मत करो। तुम कौन कहानी कह रहे थे--रात का बञ्जा का क्या सुना रह थे ? मुझको मुनाओगे, चलो छावनी पर । सरकार, मै वीमार हूँ । वुड्ढा हूँ । वीमार हूँ। शैला ने कहा--ठोक इन्द्रदेव, अच्छा सोचा। इस वुड्ढे की कहानी वडी अच्छी होगी । लिवा चलो इस । वजा । तुम्हारी कहानी हम लोग भी सुनगे । चलो। इन्द्रदेव ने कहा-अच्छा तो हागा। चौवेजी न कहा-अच्छा तो होगा सरकार ! मैं भी मधुवा का साथ लिवा चलूगा । शायद फिर घुटना टूटे, तेल मलवाना पड और इन गायों को भी हाक ले चलूं, दूध भी____मव हँस पडे, परन्तु वुड्ढा वडे सकट में पडा । कुछ वाला नहीं , वह एकटक शैला का मुंह देख रहा था । एक अपरिचित । किन्तु जिसस परिचय बढान के लिए मन चचल हो उठे। माया-ममता स भरा-पूरा मुख । बुड्ढा डरा नही, वह समीप होन की मानसिक चप्टा करन लगा । साहस बटोरकर उसने कहा- सरकार । जहा कहिय, वहा चलूं। तितली २३३