पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२६४

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परिचय अपने-आप दे दिया था, वह चाय के गर्म प्याले के सामने ठढी हो चली थी। ___ शैला ने चाय के छोटे-से पात्र से उठते हुए धुएं को देखते हुए कहा—कुंवर साहब की मां भी सुना, आ गई हैं ? ____मुझे तो नहीं मालूम, मैं अपनी मोटर स यही उतर पडी थी। उनके साथ ही आती, पर क्या करूं, देर हो गई। किसी को पूछ आने के लिए भेजिएगा? मुझे तो आपस सहायता मिलनी चाहिए मिस अनवरी-शैला ने हँसकर कहा-आपके कुंवर साहब आ जायें, तो प्रबन्ध अरे शला ! यह कौन इन्द्रदेव । तुम अब तक क्या कर रहे थ—कहकर शैला न मिस अनवरी की ओर सकेत करते हुए कहा-आप मिस अनवरी फिर अपने होठ को गर्म चाय में डुबो दिया, जैसे उन्हे हंसन का दण्ड मिला हो । इन्द्रदव न अभिनन्दन करते हुए कहा-मां जब स आई, तभी से पूछ रही है, उनकी रीढ में दर्द हो रहा है । आपसे उनसे भेट नही हुई क्या? _____जी नही, मैंन समझा, यही हागी । फिर जब यहाँ चाय मिलने का भरोसा था, ता थोडा यही ठहरना अच्छा हुआ-कहकर अनवरी मुस्कराने लगी। ____ इन्द्रदेव न साधारण हँसी हंसते हुए कहा- अच्छी बात है, चाय पी लीजिए। चौबेजी आपको वहाँ पहुँचा देगे। तीना चुपचाप चाय पीने लगे । इन्द्रदव ने कहा-~-चौबे आज तुम्हारी गुजराती चाय बडी अच्छी रही । एक प्याला और ले आओ, और उसके साथ और भी कुछ चौब साहन-पापडी के टुकडे और चायदानी लेकर जब आये, तो मिस अनवरी उठकर खड़ी हो गई। इन्द्रदेव न कहा-वाह, आप तो चली जा रही है । इसे भी तो चखिए। शैला न मुस्करात हुए कहा-वैठिए भी, आप तो यहाँ पर मेरी ही महमान होकर रह सकेगी। हो, इसको तो मैं भूल गई थी--कहकर अनवरी बैठ गई। चौबेजी ने सबको चाय दे दी, और अब वह प्रतीक्षा कर रहे थे कि कब अनवरी चलेगी। पर अनवरी तो वहां से उठन का नाम ही न लेती थी। वह कभी इन्द्रदेव और कभी गैला को देखती, फिर सन्ध्या की आने वाली कालिमा की प्रतीक्षा करती हुई नीले आकाश से आँख लडान लगती। उधर इन्द्रदेव इस बनावटी सन्नाटे स ऊब चले थे। सहसा चौबेजी न कहा २३६ प्रसाद वाङ्मय