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सरकार । वह बुड्ढा आया है, उसकी कहानी का मुनिएगा? मैं लालटेन लता आऊँ? फिर अनवरी की ओर देखते हुए कहने लगे-अभी आपको भी छोटी कोठी मे पहुँचाना होगा। अनवरी का जैसे धक्का लगा। वह चटपट उठकर खड़ी हो गई। चौबेजो उस साथ लेकर चले। इन्द्रदेव ने गहरी सांस लेकर कहा-शैला । क्या इन्द्रदेव मां से भट करोगी? चलूं? अच्छा, कल सवेरे । इन्द्रदेव की माता श्यामदुलारी पुरान अभिजात-कुल को विधवा हैं। प्राय बीमार रहा करती हैं। किन्तु मुख-मडल पर गर्व की दीप्ति आज्ञा देने की तत्परता और छिपी हुई सरल दया भी अकित है ? वह सरकार है। उनके आसपास अनावश्यक गृहस्थी के नाम पर जुटाई गई अगणित सामग्री का विखरा रहना आवश्यक है । आठ से कम दासिया से उनका काम चल ही नही सकता । दो पुजारी और ठाकुरजी का सम्भार अलग । इन सबके आज्ञा-पालन के लिए कहारो का पूरा दल । वहँगी पर गगाजल और भोजन का सामान ढोते हुए कहारो का आना-जाना-श्यामदुलारी की आँख सदैव दखना चाहती थी। बेटा विलायत से लौट आया है। एक दिन उनसे मिलकर उनकी चरण-रज लेकर वह छावनी मे चला आया और यहा रहने लगा। लोग कहत है कि इन्द्रदेव के काना म जब यह समाचार किसी मतलब से पहुंचा दिया गया कि चरण छूकर आपके चल आने पर माताजी ने फिर से स्नान किया, तो फिर वह मकान पर न ठहर सके । किन्तु श्यामदुलारी की प्रकृति ही ऐसी है। उसने ऐसा किया हो, तो कोई आश्चर्य नही । तव भी श्यामदुलारी को तो यही विश्वास दिलाया गया किसाथ म मेम नही आई है । श्यामदुलारी अपने बेटे को सम्भालना चाहती थी। बेटी माधुरी से पूछकर यही निश्चित हुआ कि सब लोग छावनी पर ही कुछ दिन चनकर रहे । वही इद्रदेव को सुधार लिया जायगा। माधुरी घर को प्रबंधकों है । वह दक्ष, चिडचिडे स्वभाव को सुन्दरी युवती तितली २३७