पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२६८

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हाथ-मुंह धोकर मुलायम तौलिये से हाथ पोछती हुई अनवरी वडे-से दर्पण के सामने खडी थी। शैला अपन साफा पर बैठी हुई रेशमी रूमाल पर कोई नाम कसीदे से काढ रही थी। अनवरी सहसा चचलता से पास जाकर उन अक्षरो को पढने लगी। शैला ने अपनी भोली आँखा को एक बार ऊपर उठाया, सामने से सूर्योदय की पीली किरणो ने उन्हे धक्का दिया, वे फिर नीचे झुक गई । अनवरी न कहा-मिस शैला | क्या कुंवर साहब का नाम है ? जी-नीचा सिर किय हुए शैला ने कहा। क्या आप राज सवेरे एक रूमाल उनको देती है ? यह तो अच्छी बाहनी है | ---कहकर अनवरी खिलखिला उठी। शैला को उसकी यह हंसी अच्छी न लगी। रात-भर उसे अच्छी नीद भी न आई थी। इन्द्रदेव न अपनी माता से उसे मिलाने की जो उत्सुकता नहीं दिखलाई, उल्टे एक ढिलाई का आभास दिया, वहाँ उसे खटक रहा था । अनवरी ने हंसी करके उसको चौकाना चाहा, किन्तु उसके हृदय म जैसे हंसने की सामग्री न थी? इन्द्रदेव ने कमरे के भीतर प्रवेश करते हुए कहा-शैला | आज तुम टहलने नही जा सकी ? मुझे ता आज किसानो की वातो स एट्टी न मिलेगी । दिन भी यढ रहा है । क्या न मिस अनवरी को साथ लेकर घूम आओ। अनवरो न ठाट से उठकर कहा-आदावअर्ज है कुंवर साहव | बडी खुशी स । चलिए न । आज कुंवर साहब का काम में ही करूंगी। ___ोला इस प्रगल्भता से ऊपर न उठ सकी । इन्द्रदेव और अनवरी को आत्मसमर्पण करते हुए उसन कहा-अच्छी बात है, चलिये । इन्द्रदेव बाहर चरे गये। ___खता म अकुरा को हरियाली फैली पड़ी थी। चोखूटे, तिकाने, और भी कितने आकार के टुकडे, मिट्टी की मडा से अलगाय हुए, चारों आर समतल म फैले थे । बीच-बीच म आम, नीम और महुए के दो-एक पड जैस उनकी रख २४० प्रसाद वाङ्मय