पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२६७

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माधुरी क्षण-भर के लिए चुप हो गई। फिर वाली--अनवरी, एसो दिल्लगी न करो, यह बात मुझे ही नही, घर भर का खटक रही है। लेकिन भाई साहब तो कहते हैं कि वह हमारी दोस्त है। हाँ-बीवी, दोस्तो नही तो क्या दुश्मनी से कोई इतना बडा माधुरी ने भीतर के कमरे की ओर देखते हुए उसके मुंह पर हाथ रख दिया, और धीरे धीरे कहने लगी-प्यारी अनवरी । क्या इस चुडैल स छुटकारा पान का कोई उपाय नही हम लोग क्या कर ? कोई बस नही चलता। धीरे-धीरे सब हो जायगा । लेकिन तुम्हे बुरा न लगे, तो मैं एक बात पूछ क्या? कुवर साहब इससे ब्याह कर ले, तो तुम्हारा क्या ? ऐसा न कहो अनवरी) तुम्हारी मां ता फिर तुमको हो उह, तुम क्या बक रही हो । अच्छा तो मैं कुछ दिन यहाँ रहूँ तो ता रहो न मेरी रानी। तितली २३६