पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२७०

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हाँ-कहकर तितली ने सिर झुका लिया। आज जैसे उसे अकेले मे मधुवन से बातें करते हुए समग्र ससार ने देखकर व्यग मे हंस दिया हो। वह सकोच मे गडी जा रही थी। शैला ने उसकी ठोढी उठाकर कहा-लो, यह पांच रुपये तुम्हारे उस दिन की मजूरी के हैं। ___मैं, मैं न लूंगी। बापू बिगड़ेंगे। वह चचल हो उठी। किन्तु शैला कब मानने वाली थी। उसन कहा-देखा इसमे ढाई रुपये तो मधुवन को दे दो, वह अपना पत सीच ले और वाकी अपने पास रख लो। फिर कभी काम देगा। अव मधुबन भी निकल आया था। वह विचार-विमूढ था, क्या कहे । तब तक तितली को रुपया न लेते देखकर शैला ने मधुबन के हाथ में रुपया रख दिया, और कहा-बाकी रुपया जब तितली मांगे तो दे देना । समझा न ? मैं तुम लोग। को छावनी पर बुलाऊँ, तो चले आना। दोनो चुप थे। अनवरी अब तक तो चुप थी, किन्तु उसके हृदय ने इस सौहार्द को अधिक सहने से अस्वीकार कर दिया । उसने कहा--हो चुका, चलिये भी। धूप निकल आई है। __शैला अनवरी के साथ घूम पडी। उसके हृदय म एक उल्लास था। जैस कोई धार्मिक मनुष्य अपना प्रात कृत्य समाप्त कर चुका हो । दोना धीरे-धीरे ग्रामपथ पर चलने लगी। अनवरी न धीरे मे प्रसग छेड दिया-मिस शैला । आपको इन दिहाती नोगा से बातचीत करन म बडा सुख मिलता है। ___मिस अनवरी | मुख | अरे मुझे तो इनके पास जीवन का सच्चा स्वरूप मिलता है, जिसमे ठोस मेहनत, अटूट विश्वास और सन्तोष से भरी शाति हसती खेलती है । लन्दन की भीड से दबी हुई मनुष्यता मे मैं ऊब उठी थी, और सबस बड़ी बात तो यह है कि मैं दुख भी उठा चुकी हूँ । दुखी के साथ दुखी की सहानुभूति होना स्वाभाविक है। आपको यदि इस जीवन मे मुख-ही-मुख मिला है तो नहीं-नही, हम लोगों को सुख-दुख जोवन से अलग होकर कभी दिखाई नही पडा । रुपयो की कमी ने मुझे पढाया और मैं नर्स का काम करने लगी। जब अस्पताल का काम छोडकर अपनी डाक्टरी का धन्धा मैंने फैलाया, तो मुझे रुपयो की कमी न रही। पर मुझे तो यही समझ पडता है कि मेहनत-मजूरी करते हुए अपने दिन बिता लेना, किसी के गले पड़ने से अच्छा है । २४२ प्रसाद वाङ्मय