पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२७३

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सरकार के सामने जायगी। जनवरी भी वही है, और वही है वीबीरानी माधुरी । हे भगवान् । शैला, इन्द्रदव और चौवेजी छोटो कोठी की आर चले। मधुवन क हाथ म था रुपया और परा म फुरतो, वह महंगू महता के खेत पर जा रहा था । बीच में छावनी पर से लौटते हुए रामनाथ स भट हा गई । मधुबन क प्रणाम करन पर रामनाथ न आशीर्वाद देकर पूछा-कहाँ जा रहे हो मधुवन ? आज पहला दिन है, बाबाजी ने उसे मधुवा न कहकर मधुवन नाम से पुकारा । वह भीतर-ही-भीतर जैस प्रसन्न हो उठा । अभी-अभी तितली से उसके हृदय की बाते हो चुकी थी। उनकी तरी छाती म भरी थी। उसने कहा -- बाबाजी, रुपया देने जा रहा है। महंगू से पुरवट के लिए कहा था-आलू और मटर सोचने के लिए। वह बहाना करता था, और हल भी उधार देने से मुकर गया । मेरा खत भी जोतता है और मुझी से बढ-बढ़कर बात करता है। रामनाथ ने कहा-~-भला रे, तू पुरवट के लिए तो रुपया देन जाता है~सिंचाई होगी, पर हल क्या करेगा? आज-कल कौन-सा नया खत जोतेगा? ___मधुवन न क्षण-भर सोचकर कहा-बावाजी, तितली न मुझस चार पहर के लिए कही से हल उधार माँगा था। सिरिस के पेड क पास बनजरिया में बहुत दिना स थाडा खत बनाने का वह विचार कर रही ह, जहाँ बरसात में बहुत-सी खाद भी हम लागाने डाल रखी थी। पिछाड होगी तो क्या, गाभी बोने का दुत पागल । ता इसके लिए इतने दिना तक कानाफूसी करने की कौन-सी बात थी ? मुझसे कहती । पच्छा, तो रुपया क्षुझे मिला? हाँ बावाजी, मेम साहब न तितली को पाच रुपया दिया था, वही ता मर । पास है। मेम साहब ने रुपया दिया था । बचो का ? तू कहता क्या है। हाँ, मरे ही हाथ मे तो दिया। वह तो लती न थी। कहती थी, बापू बिगडे गे | किसी दिन मम साह्न का उसने कोई काम वर दिया था, उसी की मजूरी बाधाजी । मम साहब बडी अच्छी हैं । रामनाथ चुप होकर साचने लगा। उधर मधुवन चाहता था, बुड्ढा उस छुट्टी दे । वह बडा-खडा ऊवन लगा । उत्साह उस उकसाता था कि महेंगू क पास पहुंचकर उसके आगे रुपये फेक दे और अभी हल लाकर वो का छाटा-सा तितली २४५