पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२७४

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गोभी का खेत बना दे। वुड्ढा न जाने कहाँ से छीक की तरह उमके मार्ग म बांधा-सा आ पहुंचा। रामनाथ साच रहा या छावनी को वात | अभी-अभी तहसीलदार ने जो रूप दिखलाया था, वही उसके सामने नाचन लगा था। उसे जैसे बनजरिया को कायापलट होने के साथ ही अपना भविष्य उत्पातपूर्ण दिखाई देने लगा। तितली उसम नया खेत बनाने जा रही है । तब भी न जाने क्या सोच कर उसने कहा-जाओ मधुवन, हल ले आओ। मधुबन तो उछलता हुआ चला जा रहा था। किन्तु रामनाथ धीरे-धीर वनजरिया की ओर चला। तितली गाया को चराकर लौटा ले जा रही थी। मधुबन तो हल ले आने गया था। वह उनको अकेली कैसे छोड देती। धूप कडी हो चली थी। रामनाथ न उसे दूर से देखा । तितली अब दूर से पूरी स्त्री-सी दिखाई पड़ती थी। रामनाथ एक दूसरी बात सोचने लगा। वनजरिया के पास पहुंचकर उसन पुकारा-तितली। उसने लौट कर प्रफुल्ल बदन स उत्तर दिया-'बापू ।' २४६ प्रसाद वाङ्मय