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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२८०

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बदलकर उसक कोने-काने को झुलसान लगी है। उसके मन म लाभ ता जाग ही उठा था । अधिकारच्युत होने की आशका ने उसे और भी सन्दिग्ध और प्रयत्नशील बना दिया। उसके गौरव की चादनी शैला की उपा म फीकी पडेगी ही, इसकी दृढ़ सम्भावना थी, और अब वह युद्ध के लिए तत्पर थी। चौवेजी को खीचन के लिए उसने मन-हो-मन सोच लिया | एक सम्मिलित कुटुम्ब म राष्ट्रनीति न अधिकार जमा लिया । स्व-पक्ष और पर-पक्ष का सृजन होने लगा। ___ चौबेजी कम चतुर न थे। माधुरी को उन्हान अधिक समीप समझा । ढुले भी उसी ओर । मोटर लेकर जब वह आये, तो उन्होने कहा-बीबी रानी । हम लोगो ने बड़े सरकार का समय और दरवार देखा है। अब यह सब नही देखा जाता । तुम्ही बचाओगी ता यह राज वचगा, नही तो गया । मैं अब उसके लिए चाय बनाना नही चाहता । मुझे जवाव मिल जाय, यही अच्छा है। मोटर पर बैठते हुए अनवरी न कहा-घवराइए मत चौबेजी, बीबी रानी आपके लिए कोई वात उठा न रखगी। २५२ प्रसाद वाङमय