पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२८५

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फिर बाबाजी और उसने मिलकर हल चलाया। सुनता है रे रामदीन, अब बडे घर क लोग हल चलाने लगे, मजूर नही मिलते, वाबाजी तो यह सब बात मानते ही नहीं। उन्होंने मधुबन स भी हल चनवाया। वह कहते हैं कि हल चलाने से बडे जोगा की जात नही चली जाती। अपना काम हम नही करग, तो दूसरा कौन करेगा। आज-कल इस दश मे जो न हो जाय । कहाँ मधुबन का वश कहाँ हल चलानो । वाबाजी ने उसको पढ़ाया-लिखाया और भी न जाने क्या-यया सिखाया । वह जाता है शहर यहाँ से बोझ लिवाकर सौदा वचा । जव में कुछ कहती हूँ तो कहता ह-- वहन | वह सब रामकहानी के दिन बीत गय । काम करके खाने मे ताज कैसी। किसी को चोरी करता हूँ या भीख मांगता हूँ ? धीरे-धीरे मजूर होता जा रहा है। मधुवन हल चलावे यह वैसे मह सवतो है। इसी से तो कहती है कि क्या दो घटे जाकर तू उसका काम नहीं कर सकता था । __दापहर को खान-नहाने की छुट्टी तो किसी तरह मिनती है। कैसे क्या कहूँ, अभी न जाऊँ ता रोटी भी रसोईदार इधर-उधर फक देगा। फिर दिन भर टापता रह जाऊँगा । मानकिन पहले से कह दिया जाय तो कोई उपाय भी निकाल लू । अच्छा, जा बल आना ता मुझम भट करके जाना भूलना मत | समझा न? मधुवन मिले तो भेज दो। रामदीन ने मछता रखते हुए सिर झुकाकर अभिवादन किया । फिर मलिया की ओर देखता हुजा वह चला गया। गमदीन की नानो धूप मे धाती फैलाकर रसोई घर की ओर मछली कर गई । वह चौके मे आग-पानी जुटाने लगी। मलिया मालस्नि क पास बैठ गई थी। राजकुमारी ने उनसे पूछा--- मलिया | तेरी ससुराल के लोग कभी पूछते हैं ? उसने कहा-नही मालकिन, अब क्यो पूछने लगे। राजकुमारी न कहा-ता रामदीन से तेरी मगाई कर दू न ? जाओ मालकिन, इसीलिए मुझको राजकुमारी उसको इस तज्जित मूर्ति को देखकर रुक गई। उन्होन बात बदलने के लिए कहा-तो आज-कल तू वहाँ रात दिन रहती है ? क्या न रहूंगो। बीवीरानी माधुरी की तरेर भरी आँख देखकर ही छठी का दूध याद आता है । अरे बाप रे । मालकिन, वहाँ से जब घर आती हूँ, तो जैसे बाघ के मुंह से निकल आती हूँ। इधर वो उनकी आँख और भी चढी रहती है । तितली २५७ १७