पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२८४

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अर तो केवल दस धरो को वस्ती है। परन्तु जब शेरकोट के अच्छे दिन थे, तो उसकी प्रजा से काम करने वालो से—यह गांव भरा था। शेरकोट के विभव क साथ वहां की प्रजा धीरे-धीरे इधर-उधर जीविका की खोज में खिसकने लगी। मल्लाहो की जीविका ता गगावट से ही थी, वे कहाँ जाते ? उन्ही के साथ दो-तीन कहारो के भी घर वच रहे—उस छोटी-सी बस्ती म। रही-वही पुराने घरो की गिरी हुई भीतो ने दूह अपन दारिद्रय-मडित सिर वा ऊंचा करने की चेष्टा में सलग्न थे, जिनके क्सिी सिर पर टूटी हुई धरन उन घरो का सिर फोडनेवाली लाठी वी तरह अडी पडी थी। उधर शेरकोट का छोटा-मा मिट्टी का ध्वस्त दुर्ग या | अब उसका नाम मात्र है, और है उसके दा आर नाले की खाई-एक आर गगा । एक पथ गवा म जाने के लिए था। घर मब गिर चुके थे। दो-तीन कोठरिया के साथ एक आंगन घच रहा था। भारत का वह मध्यकाल था, जब प्रतिदिन आक्रमणो के भय म एक छोटेमे भूमिपति को भी दुर्ग की आवश्यकता होती थी। ऊंची-नीची होने के कारण शेरयोट में अधिक भूमि हाने पर भी, खेती के काम में नही आ सकती थी। तो भी राजकुमारी ने उसमे फल-फूल और माग-भाजी का आयोजन कर लिया था। रकोट के खंडहर में घुसते हुए राजकुमारी न बूढे मल्लाह का बिदा किया। वह बूढा मनुष्य कोट का कोई भी काम करन के लिए प्रस्तुत रहता । उमन जाते जाने कहा-मालकिन जब कोई काम हो कहला देना हम लाग आपकी पुरानी प्रजा हैं नमक खाया है। उसकी इस सहानुभूति से राजकुमारी को रोमाच हो आया । उसन कहा -"तुमसे न कहलाऊंगी, तो काम कैसे चलगा और कब नही कहलाया है ? बुढा दोनो हाथो को अपने सिर स लगाकर लौट गया। रामदीन ने एक बार जैसे सॉस ली। उसने कहा-तो मानकिन कहिए नौकरी छोड दू? जो प्रेरणा उसे बूढे मल्लाह से मिली थी, वही उत्तेजित हो रही थी। राजकुमारी ने कहा-पागल | नौकरी छोड देगा, तो खेत छिन जायगा । गांव में रह्ने पावगा फिर ? अब हम लोगो के वह दिन नहीं रहे कि तुमको नौकर रख लूंगी। मैंने तो इसलिए कह था कि मधुवन ने कही पर खेत बनाया है, वही बाबाजी की बनजरिया म । कहता था कि 'बहिन, एक भी मजूर नहीं मिला । २५६ प्रसाद वाङ्मय