पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२८८

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इन्द्रदेव की कचहरी मे आज कुछ असाधारण उरोजना थी। चिको के भीतर स्त्रियो का समूह, वाहर पास-पडोस के देहातियो का जमाव था । शैला भी अपनी कुर्सी पर अलग बैठो थी। वनजरिया वाले बाबाजी अपनी कहानी सुनाने वाले थे, क्याफि गोभी के लिए उसम खत बन गया था। उसी का लेकर तहसीलदार न इन्द्रदेव को समझाया कि वनजरिया में गोन-जातने का खेत है । उस पर एकरेज-या और भी जो कुछ कानून क वैध उपाया से देन लगाया जा सकता हो लगाना ही चाहिए। और, इस वावा को ता यहां से हटाना ही होगा, क्योकि गांव के लोग इमसे तग आ गये है । यह समाजी है, लडको को न जाने क्या-क्या मिचाता है-ऊँची जाति के लडके हल चलाने लगे हैं । नोचो का बरावर कलकता-वम्बई कमान जान के लिए उकसाया करता है । इसके कारण लोगो को हलवाहा और मजूरा का मिलना असम्भव हो गया है । तिस पर भी यह वनजरिया दवनन्दन के नाम की है। वह मर गया, अब लावारिस कानून क अनुसार यह जमीदार की है।-- इत्यादि इन्द्रदेव ने सब मुनकर कहा कि वुड्ढे की बात भी सुन लेनी चाहिए। उमस कह भी दिया गया है । उसको बुलवाया जाय। ___ आज इसीलिए रामनाय आये हैं, और साथ म लिवात नाय है तितली का। तितली इस जन-समूह में मकुचित-सी एक खम्भे की जाड म आवी छिपी हुई बैठी इन्द्रदेव का सकत पार रामनाथ न कहना आरम्भ क्यिा बार्टली साहब की नील-कोठी टूट चुकी थी। नील वा काम बन्द हा चला था। जैमा आज भी दिखायी देता है, तब भी उस गुदाम के हौज और पक्की नालियां अपना खाली मुंह खाले पड़ी रहती थी, जिसम नीम की छाया म गाये बैठकर विधाम लेती थी। पर वार्टली साहब को वह ऊंचे टीले का बंगला, जिसक नीचे बडा-सा ताल था, बहुत ही पसन्द था। नील गुदाम बन्द हो जान पर भी उनका बहुत-सा रुपया दादनी म फंसा था। २६० प्रसाद वाड्मय