पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२९०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

जो कुछ हो, यहाँ से बेच कर इगलैंड लोट चले । मरा प्रसव-काल समीप है । मैं गांव के घर में ही जाकर रहना चाहती हूँ। समझा न जेन ने सरलता से कहा। ____ इतनी जल्दी । असम्भव, अभी बहुत रुपया वाकी पड़ा है। ठहरो, मैं पहले इन लोगो स बात कर लूं।-वार्टली ने रूख स्वर स कहा। देवनन्दन ने सलाम करते हुए कुछ कहना चाहा कि वीच ही म बात काटकर काले खां ने कहा-सरकार, बहुत कहने पर यह आया है । देवनन्दन ने रोप-भरे नेत्रो से काले को देखा। बार्टली ने कहा-रुपया देते हो कि तुम्हारा दूसरा जेन उठकर जाने लगी थी। वीच ही म दवनन्दन ने उसे हाथ जोडते हुए कहा । मेरो स्त्री को लडका होने वाला है, और लडकी जेन आगे न सुन सकी । उसने कहा-बार्टली, जान दो उसे, उसको स्त्री तुम चला चाय के कमरे में, मैं अभी आता हूँ।-कहते हुए बार्टली ने जेन को तीखी आँखो से देखा । दुखी होकर जेन चली गयी। देवनन्दन की काई बिनती नहीं सुनी गयी । बार्टली ने कहा--काल खाँ, इसको यही कोठरी मे बन्द करो और तीन घटे मे रुपय न मिलें, तो बीस हटर लगाकर तब मुझसे कहना। वार्टली की ठोकर से जब दवनन्दन पृथ्वी चूमन लगा, तब वह चाय पीन चला गया । मरे हृदय में वह देवनन्दन का अपमान घाव कर गया। मैं अब तक तो कवल वह दृश्य देख रहा था । किन्तु क्षण-भर मे मैने अपना कर्तव्य निर्धारित कर लिया। मैंने कहा-काले खाँ, भूलना मत, मेरा नाम है रामनाथ । आज तुमन यदि देवनन्दन को मारा-पीटा, तो मै तुम्हे जीता न छोडूगा । मैं रुपये ले आता हूँ। क्रोध और आवेश मे कहने को ता मैं यह कहकर गाँव म चला आया, पर रुपये कहाँ से आते 1 मैं उन्ही के पट्टीदार के पास पहुंचा, पर सूद का मोल-भाव होने लगा। उनकी स्थावर सम्पत्ति पर्याप्त न थी। हिन्दुआ मे परस्पर तनिक भी सहानुभूति नही । मैं जल उठा । मनुष्य, मनुष्य के दुख-सुख से सौदा करने लगता है और उसका मापदड बन जाता है रुपया । मैंने कहा-अच्छा, अच्छा, धामपुर म मरी कृष्णार्पण माफी है, उसे भी मैं रेहन कर दूंगा। २६२ प्रसाद वाङ्मय