पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२९३

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द्वितीय खण्ड पूस की चादनी गाव क निर्जन प्रान्त म हल्क कुहास क रूप में साकार हो रही थी। शीतल पवन जब घना अमराइया में हरहराहट उत्पन करता, तब स्पर्श न होने पर भी गाढे क कुरते पहननवाले किसान अलावो की ओर खिसकन लगत । शैला खडी हाकर एक एस ही अनाव का दृश्य दख रही थी, जिसके चारा आर छ -सात किसान वठे हुए तमाखू पी रहे थे । गाढे की दोहर और कम्बल उनम स दो ही के पास थे । और सब कुरते और इकहरी चद्दरो म हूहा कर रह थे। शैला जब महुए का छाया स हटकर उन लागा क सामने आई तो, व लोग अपनी वात-चीत बन्द कर असमजस में पडे कि मेम साहब से क्या कह । शैला को सभी पहचानते थे । उसन पूछा-यह अलाव किसका है ? महँगू महता का सरकार-एक सोलह वरस के लडके न कहा । दूर से आते हुए मधुवन ने पूछा-क्या है रामजस ? मधु भइया, यही मम साहब पूछ रही थी। -रामजस न कहा । मधुबन ने शैला को नमस्कार करते हुए कहा-क्या कोई काम है ? कही जाना हो तो मैं पहुंचा दूं। नही नही मधुवन | मैं भी आग के पास बैठना चाहती हूँ। मधुवन पुआल का छाटा-सा बडल ले आया। शैला बैठ गई । मधुवन का वहाँ पाकर उसके मन म जो हिचक थी, वह निकल गई। महंगू के घर के सामन हा वह अलाव लगा था, महंगू वहाँ पर तमाख्नचिलम का प्रवन्ध रखता । दा-चार किसान, लडके-बच्च उस जगह प्राय एका रहत । महंगू की चिलम कभा ठहो न होती। बुड्ढा पुराना किसान था । उस गाँव क सब अच्छे टुकड उसको जोत म य । लहक और पाते गृहस्थी करते थे, वह बैठा तमाखू पिया करता। उसन भी मम साहब का नाम मुना था, शला तितली २६५