पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२९४

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की दयालुता स परिचित था। उसकी सवा और सत्कार के लिए मन-ही-मन कोई बात साच रहा था। सहसा शैला ने मधुवन से पूछा--मधुबन । तुम जानते हो, बार्टली साहब की नील-कोठी यहाँ से कितनी दूर है ? वह कल के लडके है मेम साहब ! उन्हे क्या मालूम कि वार्टली साहब कौन थे, मुझसे पूछिए । मेरा रोआँ-रोऔं उन्ही लोगो के अन के पला हुआ है-महंगू ने कहा। अहा | तब तुम उन्हे जानते हो? वार्टली को जानता हूँ । वडे कठोर थे। दया तो उनके पास फटकती न थी—कहते-कहते अलाव के प्रकाश मे बुड्ढे के मुख पर धृणा की दो-तीन रेखाएँ गहरी हो गई। फिर वह संभल कर कहने लगा-पर उनकी बहन जेन मायाममता की मूर्ति थी। कितने ही वाली के सताये हुए लोग उन्ही के रुपये से छुटकारा पाते, जिसे वह छिपाकर देती थी । और, मुझ पर तो उनकी बडी दया रहती थी । मैं उनकी नौकरी कर चुका हूँ। मैं लडकपन से ही उन्ही की सेवा मे रहता था । यह सब खेती-बारी गृहस्थी उन्ही की दी हुई है। उनके जाने के समय में कितना रोया था ! -कहते-कहत बुड्ढे की आँखो से पुराने आंसू बहने लगे। शला न वात सुनने के लिए फिर कहा-तो तुम उनके पास नौकरी कर चुके हो ? अच्छा तो वह नील-कोठी अरे मेम साहब, वह नील-कोठी अब काहे को है, वह तो है मुतही कोठी ! अब उधर कोई जाता भी नही, गिर रही है। जेन के कई बच्चे वही मर गय हैं । वह अपने भाई स बार-बार कहती कि मैं देश जाऊँगी, पर बार्टली ने जाने न दिया। जब वह मरे, तभी जेन को यहां स जान का अवसर मिला । मुझसे कहा था कि महंगू, जब वाया होगा, ता तुमको बुलाऊंगी उसे बलान के लिए, आ जाना, मैं दूसरे पर भरोसा नहीं करूंगी। -मुझे ऐसा ही मानती थी। चली गई, तव से उनका कोई पक्का समाचार नहीं मिला। पीछे एक साहब से,जब वह यहां का बन्दोवस्त करने आया था, सुना-कि जेन का पति स्मिथ साहब बडा पाजी है, उसन जेन का सब रुपया उड़ा डाला। वह बेचारी वही दुखी है । मैं यहाँ स क्या करता मेम साहब ! येला चुपचाप सुन रही थी। उसक मन म आंधी उठ रही थी, किन्तु मुख पर धैर्य को शातलता थी। उसन कहा-महंगू, मैं तुम्हारी मालकिन का जानती २६६ प्रसार वाट्मय