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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३०२

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श्यामदुलारी ने सिर झुका लिया । वह सोचने लगी। उनके सामने एक समस्या खडी हो गई थी। समस्याएँ तो जीवन मे बहुत-सी रहती है, किन्तु वे दूसरो के स्वार्थां और रुचि तथा कुरुचि के द्वारा कभी-कभी जैसे सजीव होकर जीवन के साथ लड़ने के लिए कमर कसे हुए दिखाई पडती हैं। श्यामदुलारी के सामने उनका जीवन इन चतुर लोगो की कुशल कल्पना के द्वारा निस्सहाय वैधव्य के रूप में खड़ा हो गया। दूसरी ओर थी वास्तविकता से वचित माधुरी के कृत्रिम भावी जीवन की दीर्घकालव्यापिनी दुख रेखा । एक क्षण मे ही नारी-हृदय ने अपनी जाति की सहानुभूति से अपने को आपाद-मस्तक ढंक लिया । ____माधुरी की ओर देखते हुए श्यामदुलारी की आँखे छलछला उठी । उन्हे मालूम हुआ कि माधुरी उस सम्पत्ति को इन्द्रदेव के नाम करने का घोर विरोध कर रही है । उसकी निस्सहाय अवस्था, उसके पति की हृदय-हीनता और कृष्णमोहन का भविष्य-सब उसकी ओर से श्यामदुलारी की बुद्धि को सहायता देन लगे। ___माधुरी ने कहने को ता कह दिया । परन्तु फिर उसने आँख नही उठाई। मिर झुकाकर नीचे की ओर देखने लगी। श्यामदुलारी ने कहा-माधुरी, अभी इसको आवश्यक्ता नही है । तू सब बातो मे टांग मत अडाया कर । मैं जैसा समझूगी, करूंगी। माधुरी इस मीठी झिडकी से मन-ही-मन प्रसन्न हुई । वह नहाने चली गई, सा भी रूठने का-सा अभिनय करते हुए । श्यामदुलारी मन-ही-मन हँसी। २७४ : पसाद वाङ्मय