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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३२०

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सेमेटिक जाति के द्वारा अस्वीकृत हुआ? नही । वास्तव में वह विदेशी था, उनके लिए, वह आर्य-सन्देश था । और कभी इस पर भी विचार किया है तुमने कि वह क्यो आर्य-जाति की शाखा मे फूला-फला? वह धर्म उसी जाति के आर्यसस्कारो के साथ विकसित हुआ, क्योकि तुम लोगों के जीवन मे ग्रीस और रोम की आर्य-सस्कृति का प्रभाव सोलहो आने था ही, उसी का यह परिवर्तित रूप ससार की आँखो मे चकाचौंध उत्पन कर रहा है । किन्तु व्यक्तिगत पवित्रता को अधिक महत्त्व देने वाला वेदात, आत्मशुद्धि का प्रचारक है। इसीलिए इसम सघबद्ध प्रार्थनाओ की प्रधानता नही । तो जीवन की अतृप्ति पर विजय पाना ही भारतीय जीवन का उद्देश्य है न? फिर अपने लिए ___अपने लिए ? अपने लिए क्यो नही । सव कुछ आत्मलाभ के लिए ही तो धर्म का आचरण है । उदास होकर इस भाव को ग्रहण करने से तो सारा जीवन भार हो जायगा। इसके साथ प्रसन्नता और आनन्दपूर्ण उत्साह चाहिए । और तब जीवन युद्ध न होकर समझौता, सन्धि या मेल बन जाता है । जहां परस्पर सहायता और सेवा की कल्पना होती है-झगडा-लडाई नोच-खसाट नहीं । शैला ने मन-ही-मन कहा—यही तो। उसका मुंह प्रसन्नता से चमकने लगा। फिर उसने कहा--आज मैं बहुत ही कृतज्ञ हुई, मेरी इच्छा है कि आप मुझे अपने धर्म के अनुसार दीक्षा दीजिए। ___क्षण-भर साच लेने के बाद रामनाथ ने पूछा-क्या अभी और विचार करने के लिए तुमको अवसर नही चाहिए ? दीक्षा तो मैं नहो, अब मुझे कुछ सोचना-विचारना नही । मकर सक्रान्ति किस दिन है। उसी दिन स मेरा अस्पताल खुलेगा । मैं समझती हूँ कि उसके पहले ही मुझे । ____अब कितने दिन हैं ? यही कोई एक सप्ताह तो और होगा। अच्छा उसी दिन प्रभात मे तुम्हारी दीक्षा होगी। जब तक और इस पर विचार कर लो। बाबा रामनाथ धार्मिक जनता के उस विभाग के प्रतिनिधि थे जो ससार के महत्त्वपूर्ण कर्मों पर अपनी ही सत्ता, अपना ही दायित्वपूर्ण अधिकार मानती है, और ससार को अपना आभारी समझती है। उनका दृढ विश्वास था कि विश्व के अन्धकार में आर्यों ने अपनी ज्ञान-ज्वाला प्रज्वलित की थी। वह अपनी सफलता पर मन-ही-मन बहुत प्रसन थे। मेरा निश्चय हो चुका । अच्छा तो आज मुझे छुट्टी दीजिये । अभी नीलवाली कोठी पर जाना होगा। मधुवन तो कई दिन से रात को भी वही रहता है । वह घर क्यो नही जाता । आप पूछिएगा।-शैला ने कहा। २६२ प्रसाद वाङ्मय