पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३२१

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आज पूछ लूगा कहकर आसन स उठत हुए रामनाथ ने पुकारा-- तितली। आई तितली ने आकर देखा कि रामनाथ आसन स उठ गये है और शैला वनजरिया से बाहर जाने के लिए हरियाली की पगडडी पर चली आई है। उसन कहा--वहन तुम जाती हा क्या? हाँ, तुमसे तो कहा ही नही । शेरकाट को वेदखल कराने का विचार माता जो ने मेरे कहने से छोड दिया है । मेरा सामान आ गया, मैं नील कोठी में रहन लगी हूँ। वही मेरा अस्पताल खुल जाएगा। क्यो, इधर मधुबन स तुमसे भेंट नही हुई क्या? तितली लज्जित सी सिर नीचा किए बोली-नही, आज कई दिना स भट नहा हुई। -उसके हृदय में धडकन होने लगी। ठीक है, कोठी में काम की बडी जल्दी है। इसी स आजकल छुट्टी न मिलती होगी--अच्छा तो तितली, आज मैं मधुबन का तुम्हारे पास भेज दूगी। -- कहकर शैला मुस्कुराई। नही-नही, आप क्या कह रही है । मैन सुना है कि वह घर भी नहीं जाते। उन्ह ___क्यो? यह तो मैं भी जानती हूँ। --फिर चिन्तित हाकर शैला न कहा-- क्या राजकुमारी का कोई सन्देश आया था? नही। अभी तितली और कुछ कहना ही चाहती थी कि सामन से मधुवन आता दिखाई पडा । उसकी भवे तनी थी । मुंह रूखा हो रहा था। शैला ने पूछा-क्यो मधुबन, आज-कल तुम पर क्या नहीं जात ? जाऊँगा । -विरक्त होकर उसने कहा । कब? कई दिन का पाठ पिछड गया है । रोटी खाने के समय से जाऊंगा। अच्छी बात है ! देखो, भूलना मत ! बहती हुई शैला चली गई, और अब सामने खडी रहो तितली । उसके मन में कितनी बातें उठ रही थी, किन्तु जब से उसके व्याह की बात चल पडी थी, वह लज्जा का अधिक अनुभव करन लगी थी । पहले तो वह मधुवन को शिडक भी देती थी, रामनाय म मधुवन क संवध म कुछ उलटी-सीधी भी कहतो पर न जाने अब वैसा साहस उसम क्या नहीं बाता । वह जार करके विगहना चाहती थी, पर जैसे अधरा के कोना म हंसी फूट उठती ! बडे धेय से उसने कहा-आत्रपल तुमको रूठना कब स आ गया है। तितली २६३