पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३२२

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मधुवन की इच्छा हुई कि वह हंसकर कह दे कि जब से तुमसे ब्याह होने की बात चल पडी है, पर वैसा न कहकर उसने कहा-हम लोग भला रूठना क्या जाने, यह तो तुम्ही लोगो की विद्या है । तो क्या मैं तुमसे रूल रही हूँ? चिढे हुए स्वर म तितली ने कहा । आज न सही, दो दिन म रूठोगी । उस दिन रक्षा पाने के लिए आज स हो परिश्रम कर रहा हूँ | नही तो सुख की रोटी किसे नही अच्छी लगती ? तितली इस सहज हंसी से भी झल्ला उठी। उसने कहा-नही-नही, मर लिए किसी को कुछ करने की आवश्यकता नहीं। तब तो प्राण बचे । अच्छा, पहले बताओ कि शेरकोट से काई आया था ? रामदीन की नानी, वही आकर कह गई होगी । उसकी टाग तोडनो ही पडे गो। अरे राम | उस बेचारी ने क्या किया है । मधुवन और कुछ कहने जा रहा था कि रामनाथ न उस दूर से ही पुकारा-- मधुबन । दोनो ने घूमकर देखा कि बनजरिया के भीतर इन्दद्रव अपन घाडे को पकडे हुए धीरे-धीरे आ रहे हैं । तितली सकुचित होती हुई झोपडी की आर जाने लगी और मधुबन ने नमस्कार किया। किन्तु एक दृष्टि म इन्द्रदव न उस सरल ग्रामीण सौन्दय का देखा । उन्ह कुतूहल हुआ । उस दिन बनजरिया के साथ तितली का नाम उनकी कचहरी म प्रतिध्वनित हो गया था। वही यह है २ उन्हाने मधुबन क नमस्कार का उत्तर दते हुए तितली से पूछा-मिस शैला अभी-अभी यहाँ आई थी? हाँ, अभी ही नील-कोठी की ओर गई है | -तितली ने घूमकर मधुर स्वर से कहा । वह खडी हो गई। इन्द्रदेव ने समीप आते हुए रामनाथ को देखकर नमस्कार किया। रामनाथ इसक पहले से ही आशीर्वाद देने के लिए हाथ उठा चुके थे? इन्द्रदेव ने हंसकर पूछा-आपकी पाठशाला तो चल रही है न? ___ श्रीमानो की कृपा पर उसका जीवन है। मैं दरिद्र ब्राह्मण भला क्या कर सकता हूँ। छोटे-छोटे लडके सध्या में पढ़ने आते हैं। अच्छा, में इस पर फिर कभी विचार करूंगा। अभी तो नौल-कोठी जा रहा है। प्रणाम। इद्रदेव अपने घाडे पर सवार होकर चले गय । रामनाथ, मधुबन और तितली वही खडे रहे। रामनाय न पूछा-मधुबन, तुम आजकल कैसे हो रहे हो? २६४ प्रसार वाङ्मय