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किन्तु पीछे फिर कर देखते है, तो राजकुमारी रामदीन की नानी के साथ खडी है । उन्होने कहा-आओ, तुम्हारी प्रतीक्षा म था । बैठो। राजकुमारी ने बैठते हुए कहा-मैं आज एक काम से आई हूँ। मै अभी-अभी तुम्हारे आने की बात सोच रहा था; क्योकि अब कितने दिन रही गये है ? नही बावाजी I ब्याह ता नही होगा।-उसन साहस से कह दिया । क्यो ? नही क्यो होगा? -रामनाथ ने आश्चर्य से पूछा । ऐसे निठल्ले से तितली का ब्याह करके उस लडकी को क्या भाड म झोकना है। आज कई दिनो से वह घर भी नहीं आता। मैं मर-कुट कर गृहस्थी का काम चलाती हूँ। वाबाजी, इतने दिनो स आपने भी मुझे इसी गाव मे देखा-सुना है । मैं अपने दु ख के दिन किस तरह काट रही हूँ। -कहते-कहते राजकुमारी की आँखो से आँसू भर आये । रामनाय हतबुद्धि-से उस स्त्री का अभिनय दखने लगे, जो आज तक अपनी चरित्र-दृढता की यश-पताका गांव-भर मे ऊँची किये हुए थी। राजकुमारी का, दारिदय म रहते हुए भी, कुलीनता का अनुशासन सव लोग जानत थे । किन्तु सहसा आज यह कैसा परिवर्तन । रामनाथ ने पूरे, बल स इस लीला का प्रत्याख्यान करने का मन म सकल्प कर लिया। बोले-सुना राजो, ब्याह तो होगा ही। जब बात चल चुकी है, तो उसे करना ही होगा । इसमे मैं किसी की बात नहीं सुनूंगा, तुम्हारी भी नही। क्या तुम्हारे ऊपर मेरा कुछ अधिकार नहीं है ? बेटी, आज ऐसी बात | ना, सा नही, व्याह तो होगा ही। राजकुमारी तिलमिला उठी थी। उसने क्रोध से जलकर कहा- कैसा होगा? आप नही जानते हैं कि जमीदार के घर के लोगो की आख उस पर है । इसका क्या अर्थ है राजकुमारी ? समझाकर कहो, यह पहेली केसी? पहेली नही बाबाजी, कुँवर इन्द्रदेव से तितली का व्याह होगा । और मैं कहती हूँ कि मैं करा दूंगी। रामनाथ के सिर के वाल खडे हो गय । यह क्या कह रही हो तुम ? तितली से इन्द्रदेव का ब्याह ? असम्भव है। असम्भव नही, मैं कहती हूँ न | आप हो सोच लीजिए । तितली कितनी मुखी होगी। पल-भर के लिए रामनाय न भूल की थी। वह एक सुख-स्वप्न था । उन्हान सम्हलकर कहा-मैं तो मधुवन से ही उसका ब्याह निश्चित कर चुका हूँ। २६६ : प्रसाद वाङ्मय