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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३२५

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तब दोनो को ही गाव छोडना पडेगा। और आप ता दो दिन के लिए अपने बल पर जो चाहे कर लेंगे, फिर तो आप जानते हैं कि वनजरिया और शेरकोट दोनो ही निकल जायेंगे और रामनाय चुप होकर विचारने लगे। फिर सहसा उत्तेजित-से बडबडा उठे-- तुम भूल करती हो राजो | तितली को मधुवन के साथ परदेश जाना पडे यह भी मै सह लूंगा, पर उसका ब्याह दूसरे से होने पर वह बचेगी नही । ___राजकुमारी ने अव रूप बदला । बहुत तीखे स्वर से बोली-ता आप मधुबन का सर्वनाश करना चाहते हैं ! कीजिए मैं स्त्री हूँ, क्या कर सकूगी । वह आँखो मे आँसू भरे उठ गई। रामनाथ भी काठ की तरह चुपचाप बैठे नही रहे । वह अपनी पोटली टटोलने के लिए झोपडी मे चले गये। जव रामनाथ झोपडी मे से कुछ हाथ मे लिए बाहर निकले तो मधुबन दिखाई पहा । उसका मुंह क्रोध से तमतमा रहा था। कुछ कहना चाहता था, पर जैसे कहने की शक्ति छिन गई हो । रामनाथ ने पूछा-क्या घर नही गये। गया था। फिर तुरत ही चले क्या आये। वहाँ क्या करता ? देखिए, इधर मै घर की कोई बात आपसे कहना चाहता था, परन्तु डर से कह नहीं सका । राजो वह कहते-कहते रुक गया । कहो, कहो । चुप क्यो हो गये। मैं जब घर पहुंचा, तो मुझे मालूम हुआ कि वह चौबे आज मेरे घर आया था। उससे बात करके राजो कही चली गई है । वावाजी ओह, तो तुम नही जानते । वह तो यही आई थी । अभी घर भी ता न पहुँची होगी। यहाँ आई थी! हाँ, कहने आई थी कि तितली का ब्याह मधुवन स न हाकर जमोदार इद्रदव स होना अच्छा होगा। यहाँ तक । मैंन तो समझा था कि पर तुम क्यो इस पर इतना क्रोध और आश्चय प्रकट करा ! न्याह तो होगा मैं वह बात नही कह रहा था । मुछ तो तहसीलदार हो की नस ठोक रन को इच्छा थी। अब देयता है कि इस पौधे को भी किसी दिन पाठ पढ़ाना तितली २६७